रेटिना के अंदर इंजेक्शन लगाने की नीडल को मिला पेटेंट, कानपुर के डॉक्टर ने किया था अविष्कार

सिमर चावला

• 03:33 PM • 16 Aug 2023

आदमी के जीवन में अगर देखने की क्षमता ना हो तो पूरा जीवन अधूरा सा लगता है. अभी भी आंखों की ऐसी कई बीमारियां हैं…

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आदमी के जीवन में अगर देखने की क्षमता ना हो तो पूरा जीवन अधूरा सा लगता है. अभी भी आंखों की ऐसी कई बीमारियां हैं जिनका कोई इलाज नहीं है. ऐसे में कानपुर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर प्रवेश काफी समय से रतौंधी, सिरस पीएडी जैसी बीमारियों पर शोध कर रहे थे.

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रेटिना के अंदर इंजेक्शन लगाने की नीडल का जीएसवीएम कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉक्टर परवेज खान ने साल 2018 में अविष्कार किया था. जिसके बाद इसे केंद्र सरकार के जरिए उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पेटेंट के लिए आवेदन किया था. अब आखिरकार 5 साल बाद देश-दुनिया के संस्थानों से सत्यापन कराने के उपरांत इस अविष्कार को 20 साल का पेटेंट दे दिया गया है.

इससे मिलती-जुलती नीडल अमेरिका में आविष्कार की गई थी लेकिन वह भी रेटिना के अंदर जाने तक सक्षम नहीं थी, लेकिन कानपुर में बनी ये सुपर ख्योरायदल नाम की नीडल में खटीमा की अंदर जा सकती है और आंखों की सभी परतों पर दवाई पहुंचा सकती है.

रतौंधी एक जन्मजात बीमारी है जिसमें आंखों के सेल्स मरने लगते हैं. नसों के सूख जाने से रोशनी चली जाती है. ऐसे ही 15 मरीज पर जीएसवीएम के नेत्र विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर प्रवेश खान ने शोध किया है.

उन्होंने इन मरीज के रक्त से तैयार प्लेटलेट्स को आंख के पर्दे की नस से जुड़ी कोशिकाओं पर लगाना था, लेकिन दोनों नसें आंख के अंदरूनी तरफ होने से वहां पहुंचना संभव नहीं था. बाजार में भी ऐसी कोई नीडल नहीं थी. इसलिए प्रो. परवेज खान ने खुद ही विशेष प्रकार की नीडल तैयार की. उसके माध्यम से रेटिना के अंदरूनी हिस्से में पहुंच कर इंजेक्शन लगाने में भी कामयाबी हुए.

डॉक्टर्स का कहना है कि नेत्र से जुड़ी बीमारियों के लिए यह एक ऐतिहासिक अविष्कार है. अभी तक इस नीडल की मदद से 5 हजार लोगों का इलाज किया जा चुका है. अब वैसे पूरे भारतवर्ष में लाने की तैयारी कर रहे हैं.

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