आंखों की रोशनी खो चुके मरीजों की दुनिया फिर हुई रोशन, GSVM मेडिकल कॉलेज को मिली बड़ी सफलता

सिमर चावला

• 09:10 AM • 09 Feb 2023

Kanpur News: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में स्टेम सेल शोध में अप्रत्याशित सफलता मिली है. जन्मजात और गंभीर बीमारियों के कारण रेटिना…

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Kanpur News: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में स्टेम सेल शोध में अप्रत्याशित सफलता मिली है. जन्मजात और गंभीर बीमारियों के कारण रेटिना खराब होने से आंखों की रोशनी गंवा चुके चार मरीजों को आशा की एक नई किरण मिली है. प्लेसेंटा अवशेषों से निकाली गई स्टेम कोशिकाएं और आंखों के रेटिना में प्रत्यारोपित रोगियों में दृष्टि बहाल करने में सफल रही हैं.

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बता दें कि चार महीने के रिसर्च की विस्तृत रिपोर्ट केंद्र सरकार के आईसीएमआर को भेज दी गई है. रिसर्च परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सुविधाएं और संसाधन जुटाने के लिए अनुदान मांगा गया है.

पिछले साल शुरू हुई थी रिसर्च, कुछ ही महीनों में मिली सफलता

मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में आसपास के कई जिलों सहित अन्य राज्यों से भी मरीज आंखों की रोशनी का इलाज कराने आते हैं. ऐसे मरीजों की परेशानी को देखते हुए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य संजय काला ने नेत्र रोग विभाग के प्रमुख प्रो. परवेज खान को स्टेम सेल पर शोध के लिए एथिक्स कमेटी से अनुमति लेकर शोध शुरू करने की सलाह दी. मध्य प्रदेश के रीवा का एक मरीज मुकेश कुमार जो की पेशे से कार्पेंटर हैं उन्हें जन्म से ही नहीं दिखता था, साथ ही उन्नाव निवासी सिपाही मो. असीम को रेटिना की लाइलाज बीमारी थी और धीरे-धीरे उसकी आंखों की रोशनी जाति जा रही थी. इन सभी मरीजों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया जिससे कि चार महीने में ही इनकी आंखों की रोशनी लौट आई.

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट क्या है – मां के गर्भ में शिशु नाल द्वारा सुरक्षित रहता है. डिलीवरी के बाद बच्चे के साथ प्लेसेंटा और उसकी परतें बाहर आ जाती हैं. इन अवशेषों को एकत्र किया जाता है और इससे स्टेम सेल निकाले जाते हैं. इसे सर्जरी के बाद रेटिना पर इम्प्लांट किया जाता है.

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. परवेज खान बताते हैं कि जुलाई 2022 से वे प्लेसेंटा के अवशेषों से स्टेम सेल निकालकर आंखों के क्षतिग्रस्त रेटिना में ट्रांसप्लांट करने पर शोध कर रहे हैं. ऑपरेशन थियेटर में स्टेम सेल सर्जरी की जाती है. अब तक चार रोगियों में डाले गए हैं, जिनके अप्रत्याशित परिणाम मिले हैं. अभी तक देश में ऐसा कोई रिसर्च नहीं हुआ है. इसकी सफलता को देखते हुए बड़े पैमाने पर रिसर्च के लिए केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजी गई है. इसमें सुविधा व संसाधन मुहैया कराने के लिए अनुदान मांगा गया है.

यूपीतक से बातचीत करते हुए डॉ परवेज ने बताया कि यह प्रोसीजर आने वाले समय में आम आदमी भी अफोर्ड कर पाएंगे. अभी इसकी कास्टिंग ज्यादा है लेकिन कुछ समय में लगभग 50,000 के आसपास ये ट्रांसप्लांट किया जा सकेगा.परवेज अहमद ने बताया की एक ऑपरेशन के दौरान कॉम्प्लिकेशन आई जिसमें स्टेम सेल जो कि एक कवच की तरह होता है वह पंचर हो गया था लेकिन उसके बाद उसे रिपेयर कर लिया गया और ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा!

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