खाकी के दामन पर लगे दाग की तो खूब चर्चा होती है, लेकिन इसी खाकी का अपना दर्द है, अपने फसाने हैं. खाकी को अपराधी भी पकड़ने हैं और अपराधी बनने से भी बचाना भी है, इसे तीर भी चलाना है और परिंदों को भी बचाना है. आज हम बात एक ऐसे ही नौजवान खाकी वाले की कर रहे हैं, जिन्होंने भीख मांगते बच्चों की तकदीर बदल दी. उनके हाथ में कॉपी और कलम थमा दी. आज इस कॉन्स्टेबल को गांव के लोग खाकी वाले गुरुजी कहते हैं.
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बता दें कि यह उन्नाव के कोरारी कला गांव के पंचायत भवन में चल रही उन बच्चों की पाठशाला है, जिनके लिए कुछ वक्त पहले तक कोरारी स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही हर आने जाने वाले के आगे पैसों के लिए हाथ फैलाना, खाने का सामान मांगना ही जिंदगी का मकसद था. मगर आज उनके हाथ उठते तो हैं, लेकिन सामने खाकी वर्दी में अ से अनार और आ से आम सिखा रहे कॉन्स्टेबल रोहित कुमार यादव की दी किताबों को पकड़ने और कलम थामने के लिए.
बात सिर्फ 4 साल पुरानी सितंबर 2018 की है, जब रोहित यादव जीआरपी उन्नाव में तैनाती के दौरान कानपुर रायबरेली पैसेंजर पर एस्कॉर्ट ड्यूटी देते थे. पैसेंजर ट्रेन जब भी कानपुर से रायबरेली जाने के रास्ते में शाम के वक्त उन्नाव से सटे कोरारी हॉल्ट स्टेशन पर रूकती, तो तमाम बच्चे आने जाने वालों से पैसे मांगने लगते, सामान मांगने लगते हैं. उन बच्चों में कुछ सयानी हो रही बेटियां भी थीं. कुछ दिन तक तो रोहित इसे देखता रहे, लेकिन फिर एक दिन ड्यूटी के बाद उन्होंने अपनी बाइक उठाई और सीधे इस स्टेशन पर आ गए.
यहां आकर रोहित ने बच्चों से बात की. बच्चों के मां-बाप से बात की, तो किसी को ना तो स्कूल के बारे में जानकारी थी और ना ही कोई स्कूल जाना चाहता था. अगले दिन रोहित अपने पैसों से एक ब्लैक बोर्ड खरीद कर ले आए और साथ में टॉफी-बिस्किट भी. अगले दिन बिस्किट-टॉफी के लालच से 5 बच्चे पढ़ने आए और स्टेशन के नीम के पेड़ के नीचे से रोहित की पाठशाला की शुरुआत हो गई. बिस्किट और टॉफी मिलने के लालच ने बच्चों की संख्या बढ़ा दी और जब बच्चे आने लगे तो उनको पढ़ाई भी समझ में आने लगी.
पंचायत भवन के दूसरे कमरे में राज्य और उनकी राजधानियों को जान रहे यह वही बच्चे हैं जो 4 साल पहले तक भीख मांगते थे. रोहित यादव ने शुरुआत तो 5 बच्चों से की थी, लेकिन आज खाकी वाले गुरु जी की पाठशाला में 125 बच्चे पढ़ने आते हैं और अब रोहित के साथ प्रदीप और ज्योति जैसे नौजवान भी इस मुहिम में साथ दे रहे हैं.
इस बीच रोहित का बीते महीने तबादला हो गया. वह जीआरपी उन्नाव से झांसी जिला पुलिस में तैनात हो गए. रोहित के तबादले की खबर ने इन बच्चों को झकझोर कर रख दिया. ढोल नगाड़े के साथ गांव वालों और इन बच्चों ने रोहित को विदाई तो दी, लेकिन बच्चे बिलख उठे.
रोहित ने बच्चों के भविष्य को लेकर गांव के ही नौजवानों बसंत और मंगल के साथ प्रकाश पुंज नामक एक संस्था बनवा दी है. बच्चों का पास के ही सरकारी स्कूल में एडमिशन भी करवा दिया गया है, लेकिन इनकी पढ़ाई लिखाई का अभी पूरा जिम्मा रोहित और गांव के कुछ नौजवान मिलकर ही उठा रहे हैं.
हालांकि रोहित की इस मुहिम में स्थानीय लोग साथ हैं. गांव के प्रधान पति सुरेश चंद कुशवाहा कहते हैं कि अब तो वह जब भी किसी अफसर या नेता के पास पंचायत के लिए प्रधान के साथ कुछ कहने जाते हैं तो पहले इस पाठशाला के लिए मांगते हैं.
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