मैनपुरी के सियासी अखाड़े की चर्चा में है BSP, दलित वोटों का रुझान बना-बिगाड़ सकता है खेल

शिल्पी सेन

• 10:44 AM • 23 Nov 2022

Mainpuri Byelection: उत्तर प्रदेश में 5 दिसंबर को एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. पर मैनपुरी लोकसभा के सियासी अखाड़े की…

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Mainpuri Byelection: उत्तर प्रदेश में 5 दिसंबर को एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. पर मैनपुरी लोकसभा के सियासी अखाड़े की लड़ाई सबसे ज्यादा दिलचस्प हो गई है. वजह ये कि मुलायम सिंह यादव की इस परम्परागत संसदीय सीट पर जहां उनकी बहू डिंपल यादव चुनाव मैदान में हैं, तो वहीं ऐन चुनाव के वक्त पर समाजवादी परिवार भी एकजुट भी हो गई है. इधर सपा से ही सांसद रहे रघुराज शाक्य को मैदान में उतार कर बीजेपी ने जहां शुरुआती दांव चला था, वहीं अब चाचा शिवपाल के सपा के खेमे में जाने से माहौल बदला है. ऐसे में बीजेपी ने अपने प्रत्याशी के लिए कई नेताओं और बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को मैनपुरी के चुनावी समर में उतार दिया है. इस सबके इस बीच बीएसपी की चर्चा भी हो रही है जिसने उपचुनाव से दूरी बनाई है.

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मैनपुरी के दिलचस्प होते चुनावी रण में ऊंट किस करवट बैठेगा, इस बात का इंतजार सबको है. पर इस बात को लेकर चर्चा है कि बहुजन समाज पार्टी के मैदान में न होने का क्या असर चुनाव पर होगा? बीएसपी उपचुनाव नहीं लड़ रही है. पर बीएसपी की गैरमौजूदगी के बावजूद पार्टी की चर्चा हो रही है. इसके पीछे 2019 में हुए चुनाव में बीएसपी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन की बात है, तो वहीं मायावती के रुख को भांपने की कोशिश भी. इस बीच बीएसपी सुप्रीमो मायावती लगातार ट्वीट कर सिर्फ बीजेपी ही नहीं सपा को भी घेर रही हैं. ऐसे में इस बात के भी कयास भी लगाए जा रहे हैं कि बीएसपी के रुख का इस चुनाव पर क्या असर होगा?

बीएसपी नहीं लड़ती है उपचुनाव

दरअसल, सामान्यतः बीएसपी उपचुनाव नहीं लड़ती है. हनालांकि, आजमगढ़ उपचुनाव जैसा अपवाद भी है. बीएसपी के इस रिकॉर्ड को देखते हुए इस बार उपचुनाव न लड़ने की घोषणा ने किसी को नहीं चौंकाया. पर राजनीतिक परिस्थितियों और दलित वोटों की संख्या को देखते हुए ‘चुनावी रण से हाथी के गायब’ होने की चर्चा भी खूब हो रही है.

अगर मैनपुरी में मतदाताओं की संख्या को देखें तो सबसे ज्यादा यादव मतदाता हैं, जो मुलायम परिवार की जीत का मार्ग प्रशस्त करते रहे हैं. हालांकि दूसरे नम्बर पर शाक्य वोटर हैं. पर अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या करीब 1 लाख 52 हजार है. इसमें भी सबसे ज्यादा संख्या जाटव वोटों की है. जाहिर है इतनी बड़ी संख्या के मतदाता चुनावी समीकरण में बदलाव कर सकते हैं. 2014 में बीजेपी के यूपी के फलक पर उभरने से पहले मैनपुरी में सपा और बसपा का ही सीधा मुकाबला होता रहा है. ऐसे में बीएसपी का चुनाव से दूर रहने का फ़ैसला इन वोटरों के रुझान को किसकी तरफ़ मोड़ेगा ये महत्वपूर्ण है.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने 2019 का गठबंधन टूटने के बाद लगातार इस बात का संदेश दिया दलितों का उत्पीड़न करने और उनके राजनीतिक रूप से अहित करने में अगर बीजेपी जिम्मेदार है तो समाजवादी पार्टी भी जिम्मेदार है. मायावती ने ये संदेश देना शुरू किया कि सपा की राजनीति बीएसपी के दलित राजनीति के विरोध में है. लगातार अपने बयानों से और सोशल मीडिया के जरिए मायावती ने ये संदेश अपने वोटरों को देने की कोशिश की. 2019 के बाद अखिलेश ने जितने नेताओं को समाजवादी पार्टी में शामिल किया उसमें से ज़्यादातर बीएसपी के नेता ही थे. हाल के समय में अखिलेश यादव ने किसी भी दलित को एमएलसी नहीं बनाया.

बीजेपी पर आक्रामक नहीं हैं मायावती!

ऐसा कहा जाता है कि मायावती बीजेपी पर मौका देख कर हमला करती हैं. पर बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होतीं. इन राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए बीजेपी ने खास तौर कर दलित वोटों के लिए अपनी रणनीति को धार दी है. परिवार के एक होने से यादव वोटों के सपा के पक्ष में जाने की उम्मीद है तो वहीं शाक्य को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने मैनपुरी में दूसरे सबसे बड़े वोट बैंक को संदेश दिया है.

मगर बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि हर बैठक में तैयारी अनुसूचित जाति के डेढ़ लाख वोट को लेकर भी हो रही है. करहल विधानसभा की जिम्मेदारी सम्भाल रहे यूपी बीजेपी के प्रदेश मंत्री और एमएलसी सुभाष यदुवंश का कहना है कि ‘हम लोग जाति धर्म के आधार पर चुनाव नहीं लड़ते. पार्टी की नीतियों और मोदी और योगी सरकार के काम पर लोगों के बीच जा रहे हैं. पर जब बीएसपी समाजवादी पार्टी में गठबंधन था और खुद मायावती जी ने मुलायम सिंह यादव जी के लिए वोट मांगा था तब भी उनको 94 हजार से ही जीत मिली थी, तो इस बार तो गठबंधन नहीं है. सभी वोटरों को हकीकत समझ में आ आ गई है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सियासी परिस्थितियों को देखते हुए बीजेपी का उत्साह बढ़ना स्वाभाविक है. सपा को इस समीकरण का पता है. इसलिए सपा नुकसान की भरपाई की हर वर्ग के बीच मुलायम की विरासत की बात कह कर रही है. हालांकि चाचा शिवपाल के सपा के साथ आ जाने से बीजेपी की लड़ाई मुश्किल हुई है, पर अगर बीजेपी को 1.5 लाख दलित वोटों में से ज्यादातर हिस्सा मिलता है तो ये बड़ी बात होगी.

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