UP निकाय चुनाव: अखिलेश ने सिर्फ चुनिंदा सीटों पर ही क्यों झोंकी अपनी ताकत? रणनीति या अपनों पर मेहरबानी

कुमार अभिषेक

09 May 2023 (अपडेटेड: 09 May 2023, 03:53 PM)

UP Nikaay Chunaav 2023: उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के प्रचार-प्रसार शोर भी आज थम गया. चुनाव प्रचार के…

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UP Nikaay Chunaav 2023: उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के प्रचार-प्रसार शोर भी आज थम गया. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन भी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. वहीं चुनाव प्रचार करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चैंपियन रहे तो अखिलेश यादव ने बिल्कुल आखिर वक्त में अपनी पूरी ताकत लगाते नजर आए. सपा प्रमुख अखिलेश यादव सिर्फ चुनिंदा उम्मीदवारों के लिए ही मैदान में उतरे.

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अखिलेश ने चुनिंदा सीटों पर ही झोंकी अपनी ताकत

कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने अपनी ताकत सिर्फ वहीं लगाई जहां उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा से लड़ाई काफी करीबी है या फिर उन जगहों पर जो सपा प्रमुख के बेहद करीबी रहे. अखिलेश यादव ने सहारनपुर में आशु मलिक के भाई के लिए रोड शो किया तो वहीं मेरठ में अपने करीबी विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान के समर्थन में रोड शो किया. कानपुर में भी अपने सबसे करीबी विधायक अमिताभ वाजपेई की पत्नी वंदना वाजपेई के लिए भी अखिलेश यादव और डिंपल यादव दोनों ने रोड शो किया और जमकर प्रचार किया. लखनऊ में अखिलेश यादव ने वंदना मिश्रा के लिए मेट्रो से प्रचार किया था.

अपनों पर मेहरबान अखिलेश!

सियासी जानकार या फिर चुनाव समीक्षकों की माने तो अखिलेश यादव जिसे पसंद करते हैं, उसके लिए सब कुछ करने को तैयार होते हैं. सिर्फ टिकट ही नहीं देते,संसाधन भी देते हैं. चुनाव प्रचार भी करते हैं. लेकिन इतने खुशकिस्मत पार्टी के दूसरे उम्मीदवार नहीं होते. कुछ का मानना है कि उनकी करीबी विधायक और नेता उन पर दबाव बनाने में सफल हो जाते हैं और इस निकाय चुनाव में भी यही हुआ है. उन्होंने सिर्फ उनके लिए प्रचार किया जो उनके करीबी थे. लेकिन ज्यादातर उम्मीदवार अखिलेश के रोड शो से वंचित रह गए.

सपा पर नजदीक से नज़र रखने वाले पत्रकार उस्मान सिद्दीकी कहते हैं कि अखिलेश यादव अपने करीबियों के लिए कुछ भी करने को तैयार होते हैं लेकिन पूरी पार्टी के लिए उस शिद्दत से नहीं जुड़ते. कुछ ऐसी ही बात लखनऊ के नावेद शिकोह भी कहते हैं. उनके मुताबिक पार्टी के कई लोगों को ऐसा लगता है कि अखिलेश पार्टी के भीतर जितने अपने लोगों हैं उनके लिए एक्स्ट्रा कर जाते हैं.

भाजपा ने शिद्दत से किया प्रचार

वहीं दूसरी थ्योरी यह कहती है कि अखिलेश यादव जानते हैं कि निकाय चुनाव में बीजेपी को हराना बेहद मुश्किल है. ऐसे हालात में उन्होंने कुछ चुनिंदा सीटों का चयन किया है. जिस पर मजबूत उम्मीदवार लड़ाये गए और उसके लिए उन्होंने अलग से मेहनत की है यही बात है कि कानपुर, मेरठ जैसे मेयर की सीट पर समाजवादी पार्टी मजबूती से लड़ रही है. वहीं अगर हम समाजवादी पार्टी की तुलना बीजेपी से करें तो बीजेपी के लिए कार्यकर्ता फर्स्ट की थ्योरी है. यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बेशक गोरखपुर में 4 सभाएं कर सकते हैं लेकिन उन्हें फिरोजाबाद से लेकार झांसी में भी उसी शिद्दत से सभा करनी है. ऐसे में बीजेपी मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों सहित स्टार प्रचारकों के जरिए इस चुनाव को एकतरफा बनाने की कोशिश कर देती है.

चुनाव प्रचार में योगी और अखिलेश का फर्क यही दिख जाता है. जब अखिलेश यादव सभी 17 नगर निगम यानी मेयर के चुनाव में प्रचार करने नहीं गए जबकि योगी ने सिर्फ 17 नगर निगम नहीं बल्कि सभी 18 मंडल में मेयर के साथ-साथ नगर पालिका और नगर पंचायत के लिए भी वोट मांगे.

पहले फेज में जहां 10 मेयर की सीटों पर चुनाव हुए उसमें से अखिलेश यादव सिर्फ तीन या चार जगहों पर कैम्पेन करने पहुंचे. जबकि आखिरी के 7 सीटों में अखिलेश ने 4 सीटों पर रोड शो किया. अगर इसकी तुलना योगी आदित्यनाथ के निकाय चुनाव के कैंपेन से करें तो योगी आदित्यनाथ ने 50 से ज्यादा सभाएं की कुछ चुनिंदा रोड शो किए सबसे ज्यादा गोरखपुर में 4 सभाएं की. लखनऊ में 3 सभाएं की वाराणसी और अयोध्या में दो-दो सभाएं की.

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