उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) का मंगलवार शाम निधन हो गया. गोरखपुर स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली. जानकारी के मुताबिक, हरिशंकर तिवारी पिछले तीन सालों से बीमार थे. वह दिल की बीमारी समेत कई रोगों से ग्रस्त थे.
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हरिशंकर तिवारी राज्य में कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह, मायावती और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकारों में साल 1997 से 2007 तक लगातार कैबिनेट मंत्री रहे.
पूर्वांचल की राजनीति में कभी खासा दबदबा रखने वाले हरिशंकर तिवारी से वीरेंद्र प्रताप शाही से अदावत जगजाहिर है. 1980 के दशक में पहले दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में गैंगवार होता था, जिसने बाद में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का रंग लिया था.
ऐसे शुरू हुई थी दोनों में अदावत
1970 के दशक में देश में जेपी आंदोलन चल रहा था. जेपी आंदोलन से देश के तमाम छात्र नेता जुड़े थे. इसी आंदोलन से उस समय गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दो छात्र नेता भी जुड़ गए. वे छात्र नेता थे बलवत सिंह और हरिशंकर तिवारी. छात्र राजनीति के समय से ही इन दोनों में वर्चस्व की जंग थी और दोनों अपने-अपने जाति के नेता के तौर पर अपना दबदबा जिले में कायम रखने में जुटे थे.
गोरखपुर यूनिवर्सिटी में ही बलवत सिंह की मुलाकात वीरेंद्र प्रताप शाही नामक एक छात्र नेता से हुई थी और दोनों के बीच खूब जमने लगी. क्योंकि, दोनों ठाकुर थे और जिले में ठाकुरों का वर्चस्व कायम रखने के मिशन में जुटे थे. मगर हरिशंकर तिवारी को ठाकुरों का वर्चस्व खलता था.
जिले में दबदबा करने के क्रम में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही दोनों ने अपने-अपने गैंग बना लिए थे. रेलवे के ठेके समेत कई सरकारी कामों को पाने की होड़ में दोनों के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई थी.
हरिशंकर तिवारी Vs वीरेंद्र प्रताप शाही
गोरखपुर मंडल के आने वाले चार जिलों (गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महाराजगंज) में लगभग हर दिन कहीं न कहीं हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही गैंग के बीच गैंगवार शुरू हो गई थी. आए दिन गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा गोरखपुर मंडल गूंज उठता था.
छात्र नेता रवींद्र सिंह ने वीरेंद्र प्रताप शाही को तराशा था. रवींद्र सिंह बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बन गए. इसके बाद 1978 में जनता पार्टी से विधायक बन गए. कुछ दिनों बाद ही गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई. विधायक रवींद्र सिंह के अंगरक्षक की गोली से जो हमलावर मारा गया वह गाजीपुर का कोई तिवारी निकला. इसके बाद ठाकुरों के गुट ने वीरेंद्र प्रताप शाही को अपना नेता मान लिया और उन्हें ‘शेरे पूर्वांचल’ कहा जाने लगा.
हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही दोनों एक ही विधानसभा क्षेत्र में चिल्लूपार के रहने वाले थे. साल 1980 में महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए और इसमें वीरेंद्र प्रताप शाही निर्दलीय लड़े और जीत हासिल की. पांच साल बाद साल 1985 में फिर चुनाव जीतकर वीरेंद्र प्रताप सिंह ने राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत बनाई.
वीरेंद्र प्रताप शाही खुली जीप में घूमते थे. उन्हें ‘शेरे पूर्वांचल’ के नाम से जाना जाता था. उनका चुनाव निशान भी शेर था. कहा जाता है कि प्रचार के आखिरी दिनों में खुली जीप में वह जिंदा शेर लेकर निकलते थे.
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