Lucknow News: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की मां हीराबेन (Heeraben Modi) का 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. प्रधानमंत्री मोदी की मां के निधन की खबर आते ही शोक संदेशों का दौर शुरू हो गया. इस क्रम में यूपी तक ने मां पर शायरी करने वाले देश के मशहूर शायर मुनव्वर राणा (Munawwar Rana) से खास बीतचीत की. इस दौरान मुनव्वर राणा भावुक हो गए.
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इस दौरान शायर मुनव्वर राणा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां को याद करते हुए श्रद्धांजलि के तौर पर शेर बोला और आंखें नम कर देना वाले किस्से सुनाए. उन्होंने कहा कि, उन जैसे विचारधारा के लोग यह नहीं कह सकते हैं कि मोदी जी की मां नहीं रही, बल्कि हम अपनी शायराना जबान में कह सकते हैं कि आज फिर मेरी मां का देहांत हो गया. मां तो मां होती है. उन्होंने आगे कहा कि, यादों के एल्बम जब हम खोलते हैं तो कभी-कभी पन्ना पलटते-पलटते सवेरा हो जाता है.
पीएम मोदी ने लिखा था पत्र
मुनव्वर राणा ने कहा कि, साल 2015 में मेरी मां का जब निधन हुआ था उस समय में बहुत बड़ी शख्सियत नहीं था. मगर उसके बाद भी मोदी जी नेेेे मुझे संवेदनाा व्यक्त करते हुए एक खत लिखा था. उसके बाद जब हमारी उनसे मुलाकात हुई तब मैंने उन्हें “मां” नामक अपने द्वारा लिखी गई किताब भेंट की थी. तब उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि कि यह किताब उन्होंने 2009 में गुजरात में पढ़ चुकी है. हम लोगों की काफी देर तक बात हुई, लेकिन इस दौरान कोई सियासी बात नहीं हुई.
मुनव्वर राणा ने बातचीत में बताया कि, “मैंने मोदी जी को बताया कि जब मैं रायपुर में था तो अचानक खबर आईं कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सब प्रोटोकॉल तोड़कर नवाज शरीफ की मां से भेंट करने गए और उन्होंने उनके चरणों को छुआ. उस वक्त मुझे रायपुर की मीडिया ने घेर लिया और कहा कि राणा साहब आप हमेशा विचारधाराओं के झगड़े में रहते हैं अब आप क्या कहेंगे? तो मैंने उनसे कहा कि बात यहां मोदी जी की नहीं है. बात यहां हिंदुस्तान की है. यह काम सिर्फ हिंदुस्तान का आदमी ही कर सकता है. यह कल्चर है. जब मां अपने बच्चों को दूध पिलाती है तब संस्कार भी उसके सीने में बो देती है.”
अगर ऐसा होता तो बंटवारा भी नहीं होता
इस दौरान राणा ने कहा कि इस मुल्क की बदनसीबी यह है कि अगर 1947 में बंटवारे के वक्त नेहरू और जिन्ना की माएं भी बैठ गईं होती तो शायद बंटवारा नहीं हुआ होता. उन्होंने कहा कि मां का इस दुनिया से चले जाना बहुत दर्दभरा होता है. अब तो यही कहा जा सकता है कि मोदी जी को कदम-कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा क्योंकि अब तो वह मां भी नहीं रही, जिसकी दुआएं उनको बचा लेती थी.
मुनव्वर राणा ने कहा कि, मुझसे अक्सर लोग कहते हैं कि जनाब आपने मां पर तो शायरी की, लेकिन बाप पर नहीं की तो मैं कहता हूं कि अगर मां नहीं होती तो बाप कहां से होता? मां जिंदा रहे या ना रहे, लेकिन वह हमेशा साथ में रहती है. मेरा एक शेर है कि, “जब भी कश्ती मेरी सैलाब में जाती है तो मां दुआ करते हुए ख्वाब में आ जाती है”. मेरी मां भी 2015 में चली गई. मैं यहीं जानता हूं कि मेरे मुश्किल वक्त में मां, अल्लाह, खुदा और भगवान से आंख मिलाकर खड़ी हो जाती है और कहती है कि मैंने तेरी इस रचना को 9 महीने अपने पेट में पत्थर की तरह रखा अगर तू इसे तकलीफ देगा तो इसका मतलब यह है कि तू अपने पार्टनर को तकलीफ दे रहा है. खुदा भी मां का कहना मान लेता है. वह बाकी किसी और का कहना नहीं मानाता है.
मोदी जी ये सोचते होंगे
उन्होंने कहा कि, मां जब चली जाती है तो सबको बहुत याद आती है. जब मां रहती है तो लगता है सब कुछ है, लेकिन जब अचानक मां चली जाती है तो लोग सोचते हैं कि उन्होंने मां के साथ कम वक्त बिताया. अब यही चीज मोदी साहब भी सोचते होंगे. जब आखिरी बार गए थे तो उन्हें 2 घंटे और रहना चाहिए था. सोचते होंगे कि मां के साथ मुझे और वक्त बिताना चाहिए था.
मुनव्वर राणा ने कहा कि, मोदी जी अब घर पर किसके लिए जाएंगे? अब वह आइना ही नहीं है जिसमें हम अपना चेहरा देखते थे. वह आंखें ही नहीं है जिनको देखकर मोदी जी की आंखों की रोशनी बढ़ जाती थी. यह एक बड़ा नुकसान है और यह हर उस इंसान का नुकसान है जो अपनी मां से मोहब्बत करता है. बहुत कम ऐसे बदनसीब लोग होंगे जो अपनी मां से मोहब्बत नहीं करते होंगे. कहा जाता है कि सांप भी अपनी मां से मोहब्बत करता है उसको यह एहसास रहता है कि हमने इस मादा सांप का दूध पिया है.
मदर्स डे बने नेशनल हॉलीडे
यूपी तक से बात करते हुए मुनव्वर राणा ने कहा कि, हम तो हमेशा कहते हैं कि मदर्स डे अपने यहां नेशनल हॉलीडे के तौर पर होना चाहिए, क्योंकि हम अपने यहां गंगा, जमुना, सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा को मां कहते हैं. हमारे यहां एक सम्मान है. मां एक आशा और उम्मीद है. मां किरण है. हमारे यहां हिंदुस्तान में कहावत है “मां मरे तो मौसी जीए” मतलब इंसान दुआ करता है कि अगर मां छीन लो तो कम से कम मौसी जिंदा रखना ताकि एक द्वार खुला रहे.
इस दौरान शायर कई बार भावुक नजर आए. उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा कि उनकी उम्र 70 साल से ऊपर की हो गए हैं, लेकिन आज जब भी बुखार आता है तो तो हम न अल्लाह को पुकारते हैं न किसी ओर को. हम बस अम्मा-अम्मा-अम्मा और अम्मा पुकारते रहते हैं. इस अम्मा में अल्लाह भी है, भगवान भी है और मोहब्बत करने वाले भी हैं. अम्मा में सब कुछ समा जाता है. मां एक औरत का नाम नहीं है बल्कि उस जज्बे का नाम है जो आपके अंदर खून की तरह दौड़ती रहती है.
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