शादीशुदा मुस्लिम युवती हिंदू शख्स के साथ लिव-इन में रहती थी, HC ने शरियत का हवाला देकर ये कहा

आनंद राज

• 03:45 PM • 02 Mar 2024

मुजफ्फरनगर में एक मुस्लिम महिला और उसके पति के बीच में संबंध ठीक नहीं थे. महिला ने अपना पति का घर छोड़ा और हिंदू युवक के साथ लिव-इन रिलेशन में रहना शुरू कर दिया. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में बड़ा आदेश दिया है.

प्रयागराज हाई कोर्ट पहुंचा केस

Prayagraj

follow google news

Prayagraj News: लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर हर दिन विवाद सामने आता है. हर दिन इसको लेकर कोर्ट में विवाद पहुंचते हैं और लोग कोर्ट से अपनी सुरक्षा मांगते हैं. इसी बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक आदेश चर्चाओं में आ गया है. पहले जानते हैं कि आखिर ये पूरा मामला क्या है?

यह भी पढ़ें...

दरअसल मुजफ्फरनगर में एक मुस्लिम महिला और उसके पति के बीच में संबंध ठीक नहीं थे. मुस्लिम महिला का नाम सालेहा है. अपने पति से लगातार विवाद होने के बाद सालेह नाम की महिला ने अपने पति का घर छोड़ दिया. इसके बाद वह बिना तलाक लिए एक हिंदू युवक विकास के साथ लिव-इन में रहने लगी.  

फिर मिलने लगी धमकियां

महिला का आरोप था कि उसे और विकास को उसके मायके-ससुराल वालों से जान का खतरा बना हुआ है. बता दें कि महिला के इस रिश्ते को उसके परिवार और रिश्तेदारों ने नहीं माना. ऐसे में महिला और युवक ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका लगा अपने लिए कोर्ट से सुरक्षा की मांग की.

मगर महिला और उसके साथी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झटका दे दिया है. बता दें कि कोर्ट ने महिला और उसके साथी की याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि शादीशुदा मुस्लिम महिला का दूसरे शख्स के साथ लिव-इन रिलेशन में रहना शरियत के मुताबिक हराम और जिना है. कोर्ट ने महिला और उसके साथी को किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया है.

 

‘आपराधिक कृत्य का कोर्ट समर्थ नहीं कर सकती’

बता दें कि महिला ने अपने पिता और रिश्तेदारों से अपने और पुरुष साथी को जान का खतरा बताया था और कोर्ट से सुरक्षा मांगी थी. इस याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस रेनू अग्रवाल की सिंगल बेंच ने कहा, महिला के “आपराधिक कृत्य” का इस अदालत द्वारा समर्थन या संरक्षित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने ये भी कहा कि "याची महिला मुस्लिम कानून (शरीयत) के प्रावधानों का उल्लंघन करके दूसरे याचिकाकर्ता के साथ रह रही है, जिसमें कानूनी रूप से विवाहित पत्नी शादी से बाहर नहीं जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला के इस कृत्य को ज़िना और हराम के रूप में परिभाषित किया गया है. 

कोर्ट ने कहा,  किसी अन्य पुरुष के साथ उसका लिव-इन रिलेशन शरीयत कानून के अनुसार 'ज़िना' (व्यभिचार) और 'हराम' (अल्लाह द्वारा निषिद्ध कार्य) है. इसी के साथ जस्टिस रेनू अग्रवाल की बेंच ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया है.
 

महिला ने पति से तलाक नहीं लिया

फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता मुस्लिम कानून (शरियत) के प्रावधानों के खिलाफ दूसरे याचिकाकर्ता के साथ रह रही है. याचिकाकर्ता महिला ने अपने पति से तलाक के संबंध में उचित अधिकारी से कोई दस्तावेज यानी तलाक पर मुहर का कानूनी आदेश हासिल नहीं किया है और वह लिव इन रिलेशनशिप में रह रही है. 

महिला पर केस भी चलाया जा सकता है

बता दें कि जस्टिस रेनू अग्रवाल की बेंच ने अपने आदेश में ये भी कहा, अगर हम आपराधिकता पर जाएं याचिकाकर्ता मुस्लिम महिला के कृत्य के लिए उस पर आईपीसी की धारा 494 और 495 के तहत केस भी दर्ज हो सकता है, क्योंकि ऐसा रिश्ता लिव-इन रिलेशनशिप या विवाह की प्रकृति के रिश्ते के दायरे में नहीं आता है. कोर्ट ने साफ कहा कि मुस्लिम महिला ने ना ही अपना धर्म बदला है और ना ही तलाक लिया है, इसलिए वह सुरक्षा की हकदार नहीं है.

महिला का पत्नी रहता है दूसरी पत्नी के साथ

बता दें कि मुस्लिम महिला का विवाह मोहसिन नाम के शख्स के साथ हुआ था. दोनों की शादी 2 साल पहले हुई थी. मगर महिला का पति अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहता था. इससे नाराज होकर पहली पत्नी अपने मायके चली गई थी. मिली जानकारी के मुताबिक, इसके बाद महिला का पति उसके साथ गाली और बदतमीजी भी करता था. इसके बाद वह एक हिंदू शख्स के साथ रहने लगी थी.

    follow whatsapp