Mainpuri Loksabha Byelection: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की विरासत वाली मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने मुलायम की बहू और पूर्व सांसद डिंपल यादव को मैदान में उतार दिया है. अभी बीजेपी के प्रत्याशी का इंतजार है, लेकिन इस बीच छोटी बहू और बीजेपी नेता अपर्णा यादव ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी से मुलाकात कर सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. मगर इतना तय हो गया है कि मैनपुरी के उपचुनाव में सपा जहां मुलायम की विरासत की बात कह कर वोट मांगेगी, वहीं बीजेपी अखिलेश यादव पर ‘परिवारवाद’ के आरोप को लेकर हमला करेगी.
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पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के पुरोधा मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी सीट पर उपचुनाव रोचक हो गया है. सपा अपनी परम्परागत सीट और अपने गढ़ में मुलायम के बिना पहले चुनाव का सामना करेगी. ऐसे में सपा मुलायम की विरासत का हवाला देकर वोट मांगेगी. ये बात और भी ज्यादा स्पष्ट हो गई है, क्योंकि अखिलेश यादव ने यहीं से सांसद रहे तेज प्रताप यादव के मुकाबले अपनी पत्नी को प्रत्याशी बना कर जहां चुनाव को सीधे मुलायम के उत्तराधिकार से जोड़ा है. वहीं परिवार में विरोध भी शांत करने की कोशिश की है. मगर अखिलेश के लिए यही विरासत की लड़ाई विपक्षी बीजेपी के लिए मुद्दा भी बन गई है.
बीजेपी ने शुरू किया परिवारवाद पर हमला
डिंपल यादव के उम्मीदवार घोषित होते ही बीजेपी के नेताओं ने परिवारवाद का आरोप लगाते हुए हमला तेज कर दिया है. प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है कि ‘ये तो पहले से ही अपेक्षित था. सपा में कार्यकर्ता तो केवल जिंदाबाद और मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए होते हैं. चुनाव तो सैफई कुनबे के लोग ही लड़ेंगे. लेकिन बीजेपी ने हर बार मैनपुरी में बढ़त बनाई है और इस बार कमल का फूल खिलेगा.’
वहीं, कन्नौज लोकसभा में डिंपल यादव को हराने वाले सुब्रत पाठक भी परिवारवाद का आरोप लगाने में पीछे नहीं रहे. तुरंत बयान जारी कर उन्होंने कहा कि सपा ने अपने मूल चरित्र के अनुसार ही प्रत्याशी घोषित किया है. सपा का गठन तो समाजवाद के नाम पर हुआ पर बाद में पार्टी जातिवादी हो गई. फिर ये एक परिवार में ही सिमट गई. पिता, चाचा, बेटा बहू, पोता सब सांसद विधायक बन गए.’
दरअसल ये तय है कि मैनपुरी में उम्मीदवार कोई हो पर बीजेपी का हमला अखिलेश यादव पर ही होगा. इसके लिए परिवारवाद सबसे बड़ा हथियार है. सैफई परिवार को ही आगे करने और कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का आरोप बीजेपी पहले भी लगाती रही है. ऐसे में इस बार ये हमला अखिलेश यादव पर होगा.
हालांकि, समाजवादी पार्टी और खुद अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का उपचुनाव भावनात्मक चुनाव है. सपा के गढ़ मैनपुरी में मुलायम के न रहने पर लोगों के समर्थन की उम्मीद है, तो परिवार के सदस्यों खास तौर पर शिवपाल सिंह यादव के रुख की वजह से भी मुश्किलें बढ़ी हैं. परिवार में कई दावेदारों के बीच डिंपल को प्रत्याशी बना कर अखिलेश से सबसे आसान फैसला करने की कोशिश की है.
पार्टी को गढ़ में मजबूत करना अखिलेश के लिए सबसे जरूरी
राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल कहते हैं कि ‘मुलायम की विरासत और उनके चेहरे के प्रति मैनपुरी में लोगों का जो भावनात्मक लगाव है और वहां के कार्यकर्ताओं की जो निष्ठा है वो प्रदेश के किसी भी दूसरे हिस्से से ज्यादा है. इस बात को अखिलेश जानते हैं. ऐसे में डिंपल की जीत की राह आसान हो सकती है. अखिलेश परिवारवाद का विपक्ष का आरोप भी जानते हैं, लेकिन पहले पार्टी का मजबूत होना जरूरी है. मुलायम की गैरमौजूदगी में ये पहला चुनाव है. इसलिए लगातार हार रही समाजवादी पार्टी की मॉरल बूस्टिंग (moral boosting) जरूरी है.’
रतन मणि लाल ये भी कहते हैं कि ‘अगर बीजेपी के परिवारवाद को लेकर तमाम हमले के बावजूद डिंपल जीतती हैं, तो कार्यकर्ताओं और पार्टी को बहुत ताकत मिलेगी. वो ये कह पाएंगे कि मैनपुरी की जनता ने बीजेपी के (परिवारवाद के) आरोप को नकार दिया. इसलिए अखिलेश ने ये फैसला लिया होगा.’
नब्बे के दशक में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने विचारधारा के सहयोगियों की अपेक्षा अपने परिवार के लोगों को चुनाव में आगे किया था. हालांकि जनेश्वर मिश्र, मोहन सिंह जैसे विचारधारा के सिपाहियों को जगह मिली पर चुनावी मुख्यधारा में मुलायम परिवार का ही वर्चस्व रहा. इस फॉर्म्युले की विपक्ष ने ‘परिवारवाद’ कह कर आलोचना तो की, लेकिन इसको सफलता भी मिली.
मुलायम के बिना हो रहे पहले चुनाव में अखिलेश यादव इसी आजमाए हुए (tried and tested) फॉर्म्युले को अपनाना चाहते हैं. सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमीक जामेई ने डिंपल यादव की रिकॉर्ड जीत का दावा करते हुए कहा कि ‘महिलाएं राजनीति में हाशिए पर हैं. लोकसभा और राज्य सभा में भी उनकी संख्या कम है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी ने जौनपुर से बिना किसी राजनीतिक अनुभव वाली डॉ. रागिनी सोनकर को विधायक बनवाया. सिराथु जैसी सीट से पल्लवी पटेल को चुनाव लड़वाने का साहस दिखाया. ऐसे में अगर लोकसभा में डिंपल यादव जी जीत कर पहुंचती हैं तो RSS-भाजपा को दिक्कत क्यों है?’
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