One Nation, One Election updates: केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति की सिफारिश के मुताबिक 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. हालांकि अभी कैबिनेट ने कानून पास नहीं किया है. सिर्फ रिपोर्ट को मंजूरी दी है. केंद्र सरकार ने यह भी नहीं बताया है कि कानून पास या लागू कब किया जाएगा. पर अब इसको लेकर राजनीति तेज हो गई है. कांग्रेस ने इसका जबर्दस्त विरोध किया है और अब उत्तर प्रदेश में भी इसपर राजनीति तेज हो गई है. खास बात यह है कि इस पूरे मामले को लेकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की एक दूसरे से बिल्कुल उलट प्रतिक्रिया देखने को मिली है. मायावती ने केंद्र की मोदी सरकार के इस प्रस्ताव और फैसले का समर्थन कर दिया है. वहीं अखिलेश यादव ने इसे लेकर पांच सवाल खड़े करते हुए बीजेपी पर निशाना साध लिया है.
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अखिलेश यादव ने एक देश एक चुनाव यानी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अपने आधिकारिक एक्स हैंडल (पहले ट्विटर) पर एक लंबी पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट में अखिलेश ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर पा रही बीजेपी को लेकर तंज भी कस दिया है.
अखिलेश ने ये पांच सवाल खड़े किए
अखिलेश यादव की एक्स पोस्ट में पांच सवाल हैं. ये सभी सवाल बीजेपी और केंद्र सरकार पर व्यंग्यात्मक लहजे में पूछे गए हैं. अखिलेश ने शुरुआत इस बात से की है कि, 'लगे हाथ महाराष्ट्र, झारखंड व यूपी के उपचुनाव भी घोषित करवा देते.' आपको बता दें कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव के साथ महाराष्ट्र और यूपी उपचुनाव नहीं कराने को लेकर अखिलेश ने ये तंज कसा है. यहां नीचे अखिलेश के ट्वीट में दिए गए सवालों को देखा जा सकता है.
- अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार?
- भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे?
- किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या जनता की चुनी सरकार को वापस आने के लिए अगले आम चुनावों तक का इंतज़ार करना पड़ेगा या फिर पूरे देश में फिर से चुनाव होगा?
- इसको लागू करने के लिए जो सांविधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है?
- कहीं ये योजना चुनावों का निजीकरण करके परिणाम बदलने की तो नहीं है? ऐसी आशंका इसलिए जन्म ले रही है क्योंकि कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य ज़रूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं.
बीजेपी पर तंज कस गए अखिलेश
अखिलेश यादव ने इसके आगे लिखा है, 'जनता का सुझाव है कि भाजपा सबसे पहले अपनी पार्टी के अंदर ज़िले-नगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के चुनावों को एक साथ करके दिखाए फिर पूरे देश की बात करे. चलते-चलते जनता यह भी पूछ रही है कि आपके अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अब तक क्यों नहीं हो पा रहा है, जबकि सुना तो ये है कि वहाँ तो ‘वन पर्सन, वन ओपिनियन’ ही चलती है। कहीं कमज़ोर हो चुकी भाजपा में अब ‘टू पर्सन्स, टू ओपिनियन्स’ का झगड़ा तो नहीं है.'
अखिलेश यादव के इस ट्वीट को यहां नीचे देखा जा सकता है.
मायावती ने इस मुद्दे पर कर दिया मोदी सरकार का समर्थन
अखिलेश यादव ने वन नेशन वन इलेक्शन पर जहां विपक्षी एकता का साथ दिया, वहीं मायावती का रुख अलग रहा. मायावती ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 'एक देश, एक चुनाव' कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने पर उनकी पार्टी का रुख 'सकारात्मक' है. मायावती ने इस सिलसिले में अपने आधिकारिक 'एक्स' हैंडल पर लिखा- 'एक देश, एक चुनाव' की व्यवस्था के तहत देश में लोकसभा, विधानसभा व स्थानीय निकाय का चुनाव एक साथ कराने वाले प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा आज दी गयी मंजूरी पर हमारी पार्टी का रुख सकारात्मक है, लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित में होना जरूरी.
कोविंद समिति ने इसी साल मार्च में सौंपी थी रिपोर्ट
आपको बता दें कि ‘एक देश, एक चुनाव’ पर गठित उच्च स्तरीय कोविंद समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने “एक देश, एक चुनाव” को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की थी. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश.
समिति ने भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार-विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की थी.
क्या एक देश एक चुनाव के सामने हैं संवैधानिक अड़चनें?
अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है. वहीं नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं. कोविंद समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकतर को राज्य विधानसभाओं से पास कराने की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद से पास कराना होगा. एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं का समर्थन चाहिए होगा.
वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चल रही इस बहस के बीच बीते दिन वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने बड़ी बात कही थी. चिदंबरम ने दावा किया था कि कि, 'वर्तमान संविधान के तहत एक राष्ट्र एक चुनाव संभव नहीं है और मोदी सरकार के पास 5 संवैधानिक संशोधन पास कराने के लिए बहुमत नहीं है. उन्होंने बताया था कि, ये जानकारी उन्हें किसी सरकारी सूत्र ने बताई है.
वैसे आपको बता दें कि, वन नेशन वन इलेक्शन कोई नया आइडिया नहीं है. आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे. 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग करने के बाद 1970 से ये सिस्टम टूट गया. अब देश भर में हर साल साल कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं.
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