Uttar Pradesh News: 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी रणनीति बदलते दिख रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भाजपा को पटखनी देने के लिए अब नया सियासी समीकरण तलाश रहे हैं. सपा अब यूपी में दलित राजनीति के संस्थापक कहे जाने वाले कांशीराम को गले लगाने जा रही है. बता दें कि रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा में अखिलेश यादव सोमवार को कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करने वाले हैं.
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कांशीराम के सहारे दलित वोट बैंक पर नजर
रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा में स्थित मान्यवर काशीराम महाविद्यालय में यह पूरा कार्यक्रम होगा जिसकी अध्यक्षता सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य करेंगे. यह महाविद्यालय स्वामी प्रसाद मौर्या का ही है. राजनीतिज्ञों की की माने तो कांशीराम की मूर्ति का अनावरण के बहाने स्वामी प्रसाद मौर्या अपने बेटे के लिए राजनैतिक जमीन तराशने की तैयारी भी कर रहे हैं. क्योंकि उनके आने के बाद यहां से समाजवादी पार्टी के विधायक पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोज पांडे अपने आप को असहज महसूस कर रहे हैं. सांसद बनने से पहले इस महाविद्यालय की कमान संघमित्रा की हाथों में थी लेकिन सांसद बनने के बाद अब इसके बाद और स्वामी प्रसाद मौर्य की पत्नी शिवा मौर्या के हाथों में है.
अखिलेश यादव बना रहे नया समीकरण
2014 में देश की राजनीति में बदले हुए राजनीतिक समीकरण के बाद जहां एक तरफ क्षेत्रीय पार्टियों का जनाधार लगातार गिर रहा है. वहीं अब समाजवादी पार्टी को भी लग रहा है कि यादव और मुस्लिम बिरादरी के साथ-साथ अब एक ऐसे राजनीतिक गठबंधन की जरूरत है जो उनके लिए एक बड़ा वोट बैंक बने. अब अखिलेश यादव को भी लगने लगा है कि यादव और मुस्लिम बिरादरी के साथ-साथ ऐसे वोट बैंक की जरूरत है जो ना सिर्फ इन्हें मजबूत कर सके बल्कि राजनैतिक और जाति समीकरण के आधार पर इनके नेताओं को विधानसभा पहुंचाने में भी कारगर साबित हो. ऐसे में अखिलेश यादव ने एक बड़ा दांव खेलते हुए दलितों के मसीहा माने जाने वाले कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करने का फैसला किया है.
दलित वोट बैंक पर नजर
कभी मायावती के कैबिनेट रहे कई बड़े नेता या यूं कहें 2007 से 12 के कई मंत्री इस वक्त समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं और दलितों के एक बड़े वोट बैंक को समाजवादी पार्टी के पक्ष में करने की कोशिश भी कर रहे हैं. कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करते हुए अखिलेश यादव एक बड़ा दांव खेल रहे हैं और इसे अखिलेश यादव के दलितों के दरवाजे पर सीधी दस्तक के रूप में माना जा सकता है.
सपा का गढ़ रहा है ऊंचाहार विधानसभा
बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य के राजनीतिक अखाड़े की शुरुआत उंचाहार विधानसभा से हुई थी. हालांकि तब इस विधानसभा को डलमऊ विधानसभा के रूप में जाना जाता था और पहली बार स्वामी प्रसाद मौर्या ने यहीं से चुनाव जीतकर विधानसभा की सीढ़ी पर कदम रखा था. हालांकि बीते 2012 और 17 विधानसभा के चुनावों में उनका बेटा यहीं से एक बार बसपा और एक बार भाजपा से चुनाव लड़ चुका है. लेकिन दोनों ही बार हुआ समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी मनोज कुमार पांडे से चुनाव हार चुका है.
वहीं 2022 में स्वामी प्रसाद मौर्य के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद इस विधानसभा में मनोज कुमार पांडे एक बार फिर सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे और स्वामी प्रसाद मौर्या के बेटे अशोक मौर्या को यहां से टिकट नहीं दिया गया था. उन्हें मायूसी ही हाथ लगी थी.
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