घोसी उपचुनाव के बाद ‘आया राम, गया राम’ की खूब चर्चा, जानिए सियासत का ये मशहूर किस्सा

यूपी तक

• 03:36 PM • 09 Sep 2023

Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर हाल उपचुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट के बावजूद समाजवादी पार्टी…

इधर SP ने घोसी में सुधाकर सिंह को दिया टिकट, उधर BJP में गए दारा सिंह चौहान दिखाने लगे ताकत

इधर SP ने घोसी में सुधाकर सिंह को दिया टिकट, उधर BJP में गए दारा सिंह चौहान दिखाने लगे ताकत

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Uttar Pradesh News : उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट पर हाल उपचुनाव में मतदान प्रतिशत में गिरावट के बावजूद समाजवादी पार्टी (सपा) के सुधाकर सिंह की भारी अंतर से जीत को मतदाताओं द्वारा ‘आया राम-गया राम’ की राजनीति को खारिज करने के रूप में देखा जा रहा है. सुधाकर सिंह ने शुक्रवार को घोसी विधानसभा उपचुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chauhan) को 42,759 मतों के भारी अंतर से हरा दिया.

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2022 से भी बड़ी जीत

इस उपचुनाव के नतीजे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जीत का अंतर 2022 के विधानसभा चुनाव की तुलना में काफी अधिक है। साल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा उम्मीदवार रहे चौहान ने भाजपा उम्मीदवार विजय कुमार राजभर को 22,216 मतों के अंतर से हराया था. पर, इस बार उप चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चौहान 42,759 वोटों से हार गए.

दारा का दलबदल लोगों को नहीं आया रास

दारा सिंह चौहान की हार से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर की राजनीतिक संभावनाओं को भी नुकसान हुआ, क्योंकि भाजपा के पक्ष में सकारात्मक परिणाम आने से भाजपा के साथ उनकी सौदेबाजी की शक्ति मजबूत हो जाती. लेकिन, घोसी में किस्मत उन पर मेहरबान नहीं हुई. घोसी के मतदाता दारा सिंह चौहान द्वारा अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलने से भी स्पष्ट रूप से नाराज थे और एक प्रकार से उन्होंने ‘आया राम, गया राम’ की राजनीति को खारिज कर दिया. घोसी क्षेत्र के एक मतदाता और चिकित्सा प्रतिनिधि अरविंद कुमार चौहान ने कहा, ‘लोगों ने दलबदलुओं को खारिज कर दिया है, जो केवल अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए अपना दल बदलते हैं.”

वहीं, स्थानीय लोगों के मुताबिक, घोसी में ‘बाहरी बनाम घरेलू’ का मुद्दा भी हावी रहा. साथ ही साथ लोगों का यह भी कहना है कि दारा सिंह की ‘आया राम, गया राम’ की पॉलिटिक्स भी इस हार की जिम्मेदार है. ‘आया राम गया राम’ वाक्य को एक लोकप्रिय जुमला बन जाने की बड़ी दिलचस्प कहानी है. आया राम गया राम का किस्सा शुरू हुआ साल 1967 में.

‘आया राम, गया राम’ का किस्सा

राजनीतिक हलकों में ‘आया राम, गया राम’ शब्द तब सुर्खियों में आ गया, जब हरियाणा के होडल से विधायक गया लाल ने 1967 में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता और कांग्रेस में शामिल हो गए. उसके बाद उन्होंने एक पखवाड़े में तीन बार पार्टियां बदलीं. पहले राजनीतिक रूप से कांग्रेस से दल-बदल कर संयुक्त मोर्चे में चले गए, फिर दल-बदल कर वापस कांग्रेस में चले गए और फिर नौ घंटे के भीतर दल-बदल कर संयुक्त मोर्चे में चले गए. जब गया लाल ने संयुक्त मोर्चा छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए तो कांग्रेस नेता राव वीरेंद्र सिंह, जिन्होंने गया लाल को कांग्रेस में शामिल करने की योजना बनाई थी, चंडीगढ़ में एक संवाददाता सम्मेलन में गया लाल को लाए और घोषणा की कि ‘गया राम अब आया राम हो गये.’

(भाषा इनपुट के साथ)

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