सियासत में न तो कोई पर्मानेंट दोस्त है होता है और न ही दुश्मन. और जब बात समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav News) की होगी, तो यह बात उनकी राजनीति के कदम-कदम पर दिखाई देगी. मुलायम सिंह यादव जब नहीं रहे, तो उनकी जीवन का सियासी पहलू लोगों के लिए चर्चा का विषय बना हुआ.
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लोहिया की पाठशाला से निकले इस समाजवादी क्षत्रप ने भारतीय संसदीय लोकतंत्र में लगभग टॉप के सभी पदों को हासिल किया. सिर्फ एक पद मुलायम सिंह यादव के हाथ से रेत की तरह फिसल गया और शायद इस बात का मलाल नेताजी को भी अंत तक रहा होगा. यह था संसदीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा पद, यानी प्रधानमंत्री का पद. यह कहानी इतनी रोचक है कि जब भी इसका जिक्र आएगा तो समाजवादी स्कूल के ही दूसरे कद्दावर नेता लालू के नाम के बिना अधूरा माना जाएगा. आज लालू भले मुलायम सिंह यादव के संबंधी हैं और उनकी बेटी राजलक्ष्मी की शादी नेताजी के पौत्र मुलायम से हुई है, लेकिन 1996 में ये रिश्ता ऐसा नहीं था.
इस कहानी पर आगे बढ़ने से पहले यहां नीचे शेयर की गई इस तस्वीर पर एक नजर डालिए. 26 फरवरी 2016, गुरुवार को दिल्ली के अशोका होटल में एक शाही शादी हुई. शादी थी लालू की बेटी राजलक्ष्मी और मुलायम के पौत्र तेज प्रताप सिंह की. शादी में मेहमानों की लिस्ट से इतर सबसे अधिक चर्चा पीएम मोदी के पहुंचने की हुई.
फिर लालू (Lalu Prasad Yadav), मुलायम और मोदी (PM Modi) की यह तस्वीर सामने आई. अगर आज आप देखें तो इस तस्वीर में एक बात कॉमन हैं. ये तीनों नेता अपनी राजनीति के दौर में किसी न किसी सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वह भी एक बार से अधिक. लेकिन मोदी एक मामले में दोनों से आगे हैं. मोदी प्रधानमंत्री पद तक भी पहुंचे, जो इन दो नेताओं को नसीब नहीं हुआ. और अब आते हैं उस कहानी पर जब पीएम पद की रेस में मुलायम सिंह एक करीबी मुकाबला हार गए थे.
यहां पढ़ें… चरखा दांव के लिए फेमस थे मुलायम, लेकिन वीपी सिंह और लालू ने उन्हें चित कर दिया!
इससे पहले हम यूपी तक की एक खास रिपोर्ट में आपको मुलायम सिंह यादव के फेमस चरखा दांव की कहानी बता चुके हैं. एक वक्त था कि मुलायम सिंह यादव के चरखा दांव का शिकार वीपी सिंह भी बने थे. यह बात तबकी है जब जनता दल की तरफ से केंद्र में वीपी सिंह पीएम थे और यूपी में मुलायम सीएम.
वीपी सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का फैसला कर लिया और उसी दौरान राम मंदिर के लिए रथयात्रा निकाल रहे आडवाणी बिहार में गिरफ्तार हो गए. आडवाणी को गिरफ्तार कर लालू ने देश की तत्कालीन सेक्युलर पॉलिटिक्स के धड़े में महफिल लूट ली और वीपी सिंह के करीबी हो गए. हालांकि तब बीजेपी ने वीपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और राजा साहब की सरकार गिर गई. लेकिन प्रदेश में मुलायम ने फिर चरखा दांव से अपनी सरकार बचा ली.
हुआ यह कि 7 नवंबर की रात को वीपी सिंह सरकार संसद में विश्वास मत नहीं हासिल कर पाई. इसके अगले ही दिन जनता दल में टूट हो गई. तब मुलायम सिंह यादव ने चिमनभाई पटेल को साथ लेकर चंद्रशेखर का साथ दिया. कहते हैं कि तब करीब 40 सांसद चंद्रशेखर के साथ थे. कांग्रेस ने सहयोग कर दिया. प्रदेश में मुलायम की सत्ता बची रही और देश में चंद्रशेखर की सत्ता आ गई. हालांकि यह बात वीपी सिंह नहीं पचा पाए और इत्तेफाक देखिए, राजनीति में ऐसा वक्त भी आया, जब वीपी सिंह ने मुलायम को मूल के साथ सूद भी चुका दिया.
पर क्या वीपी सिंह को मुलायम केंद्र की उनकी सरकार गिरने के बाद खटकने लगे थे?
असल में मुलायम सिंह यादव वीपी सिंह (VP Singh) की आंखों की किरकिरी 1980 के दशक में ही बनने लगे थे. यह किस्सा तब का है जब वीपी सिंह जून 1980 में यूपी के मुख्यमंत्री बने थे. वीपी सिंह का यह कार्यकाल 2 साल से कुछ अधिक दिनों का ही था, लेकिन काफी चर्चित रहा. इंडिया टुडे के नेशनल अफेयर्स एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार राहुल श्रीवास्तव ने News Tak के साथ उस पूरे किस्से को साझा किया है. उनके मुताबिक यूपी में तब डकैतियां बहुत होती थीं और वीपी सिंह ने एंटी डकैती अभियान चलाया था. तब मुलायम सिंह ने फूलन देवी को सपोर्ट कर दिया था और यह बात वीपी सिंह को खटक गई थी.
फिर आगे ऐसा मौका भी आया जब मुलायम सिंह ने एक बार फिर वीपी सिंह के संदेश को दरकिनार कर अपने साथ उनकी सियासी दुश्मनी का एक और तमगा लगा लिया. हुआ यह कि 1989 में जब वीपी सिंह के मोर्चे को यूपी में चुनावी जीत मिली, तो उन्होंने समाजवादी नेता सुरेंद्र मोहन को एक संदेश के साथ भेजा. वीपी सिंह का संदेश था कि अजीत सिंह को मुख्यमंत्री चुना जाए. लेकिन मुलायम के चरखा दांव के आगे सुरेंद्र मोहन की एक न चली और वह अपना मैसेज पढ़ तक नहीं पाए. मुलायम खेमे के विधायकों ने उनको अपना नेता चुन लिया. यह बात वीपी सिंह को अखर गई.
अब मौका आया वीपी सिंह के पास
मई 1996 में जब लोकसभा के चुनाव परिणाम आए तो सबको चौंकना पड़ा. कांग्रेस को 140 सीटें मिलीं, बीजेपी को 161, जनता दल को 79, सीपीआई एम को 52, सीपीआई को 32, तमिल मनीला कांग्रेल को 20 और डीएमके को 17 सीटें मिलीं. जनता दल का हिस्सा रहे मुलायम के खाते में यूपी से 17 लोकसभा सीटें थीं. वरिष्ठ पत्रकार राहुल श्रीवास्तव के मुताबिक हरकिशन सिंह सुरजीत को लगता था कि यूपी का नेता ही सबसे बड़ा नेता है. जनता दल के खेमे के तमाम नेता इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे थे कि किसका नाम पीएम के लिए आगे किया जाए. सबसे पहले जिक्र वीपी सिंह का हुआ. वीपी सिंह को पुराने धोखे याद थे और उन्हें जब पता चला कि ऐसा प्रस्ताव आने वाला है, तो वह घर से ही निकल गए. यहां से वहां घूमते रहे. अंततः वीपी सिंह ने पीएम बनने से इंकार कर दिया.
फिर हरकिशन सिंह सुरजीत ने मुलायम सिंह यादव का नाम सुझाया. लेकिन तबकी यादव लॉबी ही इस फैसले के आड़े आ गई. शरद यादव और लालू यादव, दोनों ही इस फैसले के विरोध में खड़े हो गए. लालू को भी लगा कि वह भी तो बराबर के दावेदार हैं. मुलायम के खिलाफ फाइनल वीटो वीपी सिंह ने लगा दिया और स्पष्ट कर दिया कि वह नहीं चाहते कि मुलायम पीएम बनें.
News Tak के साथ राहुल श्रीवास्तव की इस पूरी बातचीत को यहां नीचे देखा और सुना जा सकता है.
नेताजी मुलायम सिंह यादव यूपी जैसे बड़े प्रदेश के तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने. उनकी दोस्ती दक्षिणपंथी, वामपंथी सियासत के दिग्गजों और कांग्रेस की भी टॉप लीडरशिप से रही. राजनीति का हर दांव उन्हें पता था, लेकिन वीपी सिंह ने जो एक दांव चला, मुलायम उसकी काट नहीं खोज पाए. नतीजा यह हुआ कि पीएम का पद देवगौड़ा के पास आया और उनके बाद पीएम बने इंद्र कुमार गुजराल ने अपनी ऑटोबायोग्राफी Matters of Discreation में इस घटनाक्रम को द डार्केस्ट ऑफ द डार्क हॉर्स कहकर रेखांकित किया है.
अयोध्या कांड की कहानी, जिसे लेकर विरोधियों ने सपा संरक्षक को नाम दिया था ‘मुल्ला मुलायम’
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