Up Politics: मिशन 2024 को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. ये चुनाव भारतीय राजनीति के लिए काफी अहम माने जा रहे हैं. देश की राजनीति 2 भागों में बंट गई है. एक तरफ भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने एक साथ मिलकर महागठबंधन बनाया है और उसका नाम I.N.D.I.A रखा है. लगभग पूरा का पूरा विपक्ष ही भाजपा के खिलाफ एकजुट हो गया है.
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आपको बता दें कि विपक्षी दलों के I.N.D.I.A में 26 राजनीतिक दल हैं तो वहीं एनडीए में 38 राजनीतिक दल हैं. इस बीच बहुजन समाज पार्टी चीफ मायावती ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी. बसपा चीफ के मुताबिक, ना बसपा I.N.D.I.A के साथ रहेगी और ना ही NDA के साथ. यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री लोकसभा चुनाव अपने दम पर ही लड़ेंगी.
यूपी की कौन सी पार्टी किसके साथ
बता दें कि I.N.D.I.A में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, जयंत चौधरी की रालोद, कृष्णा पटेल की अपना दल ‘कमेरावादी’ है तो वहीं NDA में ओपी राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल की अपना दल सोनेलाल और संजय निषाद की निषाद पार्टी हैं.
सियासी हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी भी I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल हो सकती है. माना जा रहा है कि विपक्षी दलों के नेताओं को बसपा चीफ मायावती के फैसले का इंतजार था. मगर अब बसपा चीफ ने अपना फैसला साफ कर दिया है कि वह अकेले ही चुनाव लड़ने जा रही हैं. ऐसे में आजाद समाज पार्टी भी विपक्षी दलों के महागठबंधन में आ सकती है.
क्या मायावती को होगा सियासी फायदा
इन सबके बीच एक सवाल ये है कि क्या अकेले चुनाव लड़ने से मायावाती को फायदा होगा? या उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा? वैसे अगर पिछले 4 चुनावों को देखा जाए तो बसपा चीफ को सियासी तौर पर नुकसान ही उठाना पड़ा है.
पिछले 4 चुनावों में मायावती का वोट प्रतिशत कम हुआ है. उनका वोट बैंक, उनके अलग हो रहा है. बता दें कि पिछले 10 सालों में मायावती ने करीब 7 प्रतिशत वोट खो दिया है. हालांकि, ये दावा किया जाता है कि यूपी में दलितों में खासकर जाटव समुदाय के लोग आज भी मायावती को वोट देते हैं. अब देखना यह होगा कि मायावती को अपने इस सियासी फैसला का कितना फायदा मिलेगा.
क्या कहना है राजनीतिक विश्लेषक का
मायावती की राजनीति को लेकर CSSP फेलो, प्रो. संजय कुमार का कहना है मायावती की प्रासंगिकता लगातार कम होती जा रही है. अब मायावती के खुद के जो कोर वोटर हैं, वह मायावती पर विश्वास नहीं करते हैं. इसलिए 2022 का विधानसभा चुनाव हो या 2017 का विधानसभा चुनाव, दोनों में ही इनके वोट प्रतिशत में गिरावट आ रही है. आज यूपी विधानसभा में बसपा की सिर्फ 1 सीट है और 2007 में राज्य में बसपा की सरकार थी. जो पार्टी कभी 206 विधानसभा सीटों पर विजयी होती थी और जिसके यूपी से ही कई सांसद हुआ करते थे, आज वह पार्टी सिर्फ 1 विधानसभा सीट पर सिमट कर रह गई है, इसके लिए मायावती खुद दोषी हैं. मगर मायावती के साथ अभी भी जाटव वोट हैं. मगर अब उस वोट बैंक में भी सेंधमारी हो चुकी है. भाजपा और सपा, दोनों की तरफ ये वोट बैंक जा रहा है. देखना ये होगा कि मायावती किस चुनावी रणनीति के साथ मैदान में उतरती हैं.
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