स्पीकर के चुनाव में NDA के ओम बिरला या INDIA के K Suresh, किसे वोट देंगे चंद्रशेखर?

हिमांशु मिश्रा

25 Jun 2024 (अपडेटेड: 25 Jun 2024, 09:31 PM)

(NDA) ने लोकसभा स्पीकर के लिए एक बार फिर ओम बिरला को उम्मीदवार बनाया है. वहीं विपक्ष ने भी कांग्रेस के सांसद कोडिकुनिल सुरेश को अपना उम्मीदवार बना दिया है. अब सवाल यह है कि आखिर एनडीए या इंडिया, दोनों ही गठबंधन से बाहर यूपी के नगीना से पहली बार सांसद बने चंद्रशेखर आजाद किसे वोट करेंगे. 

Photo: Chandrashekhar Azad

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Lok Sabha speaker Election: भारतीय संसदीय राजनीति के इतिहास में 1976 के बाद एक बार फिर लोकसभा स्पीकर पद का चुनाव होने जा रहा है. बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने लोकसभा स्पीकर के लिए एक बार फिर ओम बिरला को उम्मीदवार बनाया है. NDA की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कोशिश की थी कि लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर एक आम सहमति बन जाए. पर विपक्ष के इंडिया गठबंधन ने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को मिले. जब ऐसा नहीं हुआ तो विपक्ष ने भी कांग्रेस के सांसद कोडिकुनिल सुरेश को अपना उम्मीदवार बना दिया है. अब सवाल यह है कि आखिर एनडीए या इंडिया, दोनों ही गठबंधन से बाहर यूपी के नगीना से पहली बार सांसद बने आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर आजाद किसे वोट करेंगे. 

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फिलहाल सूत्रों के हवाले से इसे लेकर एक बड़ी खबर आ रही है. ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रशेखर के अलावा अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल , शिलांग एमपी डॉ. रिक्की एंड्रयू जे स्यंगकों एनडीए उम्मीदवार ओम बिरला के समर्थन में वोट कर सकते हैं. 

स्पीकर के पद पर चुनाव का क्या है इतिहास?

पीटीआई भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक स्वतंत्र भारत में लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए केवल तीन बार 1952, 1967 और 1976 में चुनाव हुए. वर्ष 1952 में कांग्रेस सदस्य जी वी मावलंकर को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. मावलंकर को प्रतिद्वंद्वी शांताराम मोरे के खिलाफ 394 वोट मिले, जबकि मोरे सिर्फ 55 वोट हासिल करने में सफल रहे. वर्ष 1967 में टी. विश्वनाथम ने कांग्रेस उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव लड़ा. रेड्डी को विश्वनाथम के 207 के मुकाबले 278 वोट मिले और वह अध्यक्ष चुने गए. 

 

 

इसके बाद पांचवीं लोकसभा में 1975 में तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने के बाद पांचवें सत्र की अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई थी. तत्कालीन अध्यक्ष जीएस ढिल्लों ने एक दिसंबर, 1975 को इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेस नेता बलिराम भगत को पांच जनवरी, 1976 को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया था. इंदिरा गांधी ने भगत को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए प्रस्ताव पेश किया था, जबकि कांग्रेस (ओ) के प्रसन्नभाई मेहता ने जनसंघ नेता जगन्नाथराव जोशी को चुनने के लिए प्रस्ताव पेश किया था. भगत को जोशी के 58 के मुकाबले 344 वोट मिले. 

वर्ष 1998 में तत्कालीन कांग्रेस नेता शरद पवार ने पी ए संगमा को अध्यक्ष चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था. पवार के प्रस्ताव के अस्वीकार किए जाने बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तेलुगू देशम पार्टी के सदस्य जी एम सी बालयोगी को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुनने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया. वाजपेयी द्वारा रखा गया प्रस्ताव स्वीकृत हो गया.  

 

 

आजादी के बाद से, केवल एम ए अय्यंगार, जी एस ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जी एम सी बालयोगी ने अगली लोकसभाओं में इस प्रतिष्ठित पद को बरकरार रखा है. जाखड़ सातवीं और आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष थे और उन्हें दो पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र पीठासीन अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है. बालयोगी को उस 12वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया, जिसका कार्यकाल 19 महीने का था. उन्हें 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था, हालांकि बाद में उनकी एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई.

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