आरएलडी चीफ जयंत चौधरी का ‘दिल्ली सर्विस बिल’ पर राज्यसभा में वोट नहीं देना, क्या महज इत्तेफाक है या फिर सोची समझी रणनीति! वोट नहीं डालने की वजह क्या बीजेपी से नजदीकी है या फिर आम आदमी पार्टी से दूरी? अब ये सवाल उठने लगे हैं. जब पूरी विपक्षी एकता इस बिल के खिलाफ राज्यसभा में दिखाई दी थी तो ऐसा क्या था कि इंडिया गठबंधन में रहते हुए जयंत चौधरी ने बिल के खिलाफ वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया.
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दरअसल, चर्चा यह भी चली कि जयंत चौधरी कि बीजेपी से बातचीत हो रही है और यही वो वजह है जिसकी वजह से उन्होंने वोट नहीं दिया. यूपी सरकार के मंत्री जीपीएस राठौड़ ने तो यहां तक कह दिया कि अब जयंत चौधरी सूट सिलवा लें, यानि केंद्र में मंत्री बनने के लिए तैयार रहें.
वहीं, सुभासपा चीफ ओमप्रकाश राजभर ने भी कह डाला कि मैं तो पहले से कह रहा हूं कि जयंत (एनडीए में) आएंगे. राजभर ने यह भी कहा कि जब मैं कह रहा था कि दारा सिंह चौहान आएंगे तो कोई नहीं मान रहा था लेकिन वह आए अब आगे देखिए. बता दें कि पिछले दिनों दारा सिंह चौहान सपा छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. उन्होंने घोसी विधानसभा सीट से विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया है.
डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने क्या कहा?
जब दिल्ली सर्विसेज बिल पर जयंत चौधरी ने वोट नहीं डाला तो यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने कहा कि यह तो जयंत ही बताएंगे कि उन्होंने वोट क्यों नहीं डाला, यानी वोट नहीं डालने पर यह चर्चा शुरू हो चुकी है कि जयंत बीजेपी का रुख कर सकते हैं, लेकिन क्या यही सच है या कहानी कुछ और है?
बीजेपी से नजदीकी की कहानी क्या है, यह तो जयंत ही जाने, उन्होंने अभी तक ऐसा कोई इशारा नहीं किया है कि वह बीजेपी की तरफ जा रहे हैं, लेकिन संसद में विधेयक के खिलाफ वोट नहीं डालने पर जो सफाई आरएलडी की तरफ से आई, उसमें कहा गया है कि जयंत चौधरी की पत्नी अस्पताल में थी और इस वजह से वह संसद में वोटिंग में नहीं शामिल हो सके. उन्हें परिवार के साथ उस वक्त रहना जरूरी था.
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह व्हील चेयर पर आए तो बेहद बुजुर्ग शिबू सोरेन सहारे के साथ वोट देने राज्यसभा में आए थे, लेकिन जयंत चौधरी दिल्ली में रहते हुए संसद में नहीं गए. जयंत चौधरी के वोट न डालने की कहानी दिलचस्प बताई जा रही है. हालांकि, आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं है.
चर्चा में ये वजह
बिल पर वोट नहीं डालने की सबसे बड़ी वजह यह है कि आम आदमी पार्टी ने दूसरे दलों की तरह इस बिल पर समर्थन के लिए जयंत चौधरी को कोई भाव नहीं दिया था, यानि अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष के सभी बड़े नेताओं से खुद मुलाकात कर उनसे इस विधेयक पर समर्थन मांगा था, लेकिन जयंत चौधरी को सपा गठबंधन के कोटे में मान लिया गया और अरविंद केजरीवाल तो दूर उनके किसी बड़े नेता ने भी जयंत चौधरी से मिलकर समर्थन नहीं मांगा और यह बात छोटे चौधरी को खल गई थी.
पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि जयंत चौधरी से सीधे समर्थन ना मांगना आम आदमी पार्टी की बड़ी भूल थी. अब दिलचस्प बात यह है कि क्या समर्थन नहीं मांगना यह महज आम आदमी पार्टी की तरफ से भूल थी या फिर एक रणनीति का हिस्सा यानी सोच समझकर उठाया हुआ कदम है?
ये बात भी है चर्चा में
एक चर्चा यह भी है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी अपने आप को सबसे बड़ा नेता मानते हैं. जाट बिरादरी में भी अपनी चौधराहट बनाए रखना चाहते हैं और अगर उनसे समर्थन नहीं मांगा गया तो वह खुद से आगे बढ़कर समर्थन दे देंगे, इसकी उम्मीद भी नहीं की जानी चाहिए. हालांकि आम आदमी पार्टी के सूत्रों की मानें तो बेंगलुरु की बैठक में जयंत चौधरी से समर्थन लेने की बात हुई थी, लेकिन जैसे अलग-अलग नेताओं से वक्त लेकर मुलाकात करके समर्थन मांगा गया, ऐसे जयंत चौधरी से नहीं मांगा गया.
वहीं, आरएलडी को जानने वाले यह कहते हैं कि आम आदमी पार्टी और आरएलडी के टकराव की एक वजह भी है. आम आदमी पार्टी, अखिलेश यादव के जरिए गठबंधन में प्रवेश कर गाजियाबाद और मेरठ जैसी सीटें चाहती है, जबकि आरएलडी भी इन सीटों पर दावा कर रही है.
ऐसे में जयंत चौधरी को आम आदमी पार्टी से कोई खास फायदा नजर नहीं आता और पश्चिम में उन्होंने अपने समीकरण बुनने शुरू कर दिए. माना जा रहा है कि सबसे बड़ी वजह यह है कि विपक्ष के गठबंधन में जयंत चौधरी को बड़े नेताओं की तरह आम आदमी पार्टी ने तवज्जो नहीं दी और यही वोट न डालने की सबसे बड़ी वजह रही.
आधिकारिक तौर पर बताई जा रही ये वजह
हालांकि, आरएलडी की तरफ से आधिकारिक तौर पर ऐसी किसी संभावना को नकारा गया है और कहा गया है कि पत्नी की तबीयत खराब होने और अस्पताल में होने की वजह से जयंत चौधरी वोटिंग करने संसद नहीं आ सके. मगर इसमें बीजेपी के साथ होने का कोई एंगल नहीं है और वो इंडिया गठबंधन की मुंबई की बैठक में मौजूद रहेंगे.
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