UP Byelection News: समाजवादी पार्टी (सपा) ने एक बार फिर आक्रामक पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) कार्ड खेलते हुए आगामी उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की है. इस बार पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों को दी हैं. 9 सीटों में से 4 पर मुसलमान उम्मीदवार होंगे. इसके अलावा, 3 सीटें ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और 2 सीटें दलित समुदाय के उम्मीदवारों को सौंपी गई हैं. यह कदम सपा द्वारा अपने चुनावी गठबंधन को मजबूती देने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.
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मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव
सपा ने जिन 4 सीटों पर मुसलमानों को टिकट दिया है, उनमें फूलपुर, कुंदरकी, सीसामऊ, और मीरापुर शामिल हैं. पार्टी के इस फैसले को मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह समुदाय सपा के पारंपरिक मतदाताओं में से एक है.
दलित और ओबीसी उम्मीदवार
सपा ने 2 सीटों पर दलित उम्मीदवारों को उतारा है, जिनमें गाजियाबाद सदर से सिंह राज जाटव का नाम प्रमुख है. यह सीट सपा के लिए चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि पार्टी ने यहां से कभी जीत दर्ज नहीं की है. अखिलेश यादव ने अयोध्या की तरह गाजियाबाद में भी दलित-मुस्लिम समीकरण साधने का प्रयास किया है. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस सीट पर वैश्य समुदाय से उम्मीदवार उतारा है, जिसके जवाब में सपा ने दलित उम्मीदवार को टिकट देकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.
अलीगढ़ की खैर सुरक्षित सीट पर जाटव-जाट समीकरण
सपा ने अलीगढ़ की खैर सुरक्षित सीट पर चारु केन को अपना उम्मीदवार बनाया है. चारु जाटव बिरादरी से आती हैं, लेकिन उनकी शादी जाट परिवार में हुई है, जिससे जाटव और जाटों के बीच एक समीकरण बनाने की कोशिश की जा रही है. चारु कुछ हफ्ते पहले बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुई थीं और अब सपा ने उन्हें अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाया है.
आरएलडी और भाजपा का दांव
राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने मीरापुर सीट से मिथलेश पाल को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, जो कि पाल बिरादरी से आती हैं. उधर, भाजपा और आरएलडी गठबंधन ने 9 में से 6 सीटों पर दलित और ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि 3 सीटों पर ब्राह्मण और ठाकुर उम्मीदवार दिए गए हैं.
एनडीए (भाजपा-आरएलडी गठबंधन) ने 5 ओबीसी और 1 दलित उम्मीदवार दिया है, जबकि इंडिया गठबंधन ने 3 ओबीसी और 2 दलित उम्मीदवार उतारे हैं. यह चुनावी मुकाबला दिलचस्प होने वाला है, जहां सपा इसे पीडीए बनाम भाजपा के रूप में देख रही है, वहीं भाजपा ने ओबीसी को अपने अभियान के केंद्र में रखा है.
समाजवादी पार्टी ने इस बार अपने पीडीए कार्ड को मजबूती से खेलते हुए अल्पसंख्यक, ओबीसी और दलित समुदायों पर दांव लगाया है. यह रणनीति आगामी चुनावों में पार्टी की जीत की संभावनाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई है. भाजपा और सपा के बीच यह मुकाबला बहुत ही रोचक होने वाला है, जहां दोनों दल अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने में जुटे हैं.
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