Noida News: नोएडा का श्रीकांत त्यागी मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जगह-जगह त्यागी समाज लामबंद होकर गौतमबुद्ध नगर के सांसद डॉ. महेश शर्मा के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है. क्या ये प्रदर्शन 2024 के लोकसभा चुनाव में डॉ. महेश शर्मा के लिए सरदर्द बन सकते हैं? इन्हीं सवालों को लेकर यूपी तक की टीम ने गौतमबुद्ध नगर के कई वरिष्ठ पत्रकारों से बात की.
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जिले के वरिष्ठ पत्रकार और देशबंधु अखबार के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ब्यूरो चीफ देवेंद्र कुमार ने बताया कि मामला दो पड़ोसियों के बीच का था, लेकिन जिस तरह मामले को लेकर राजनीति की जा रही उस से भाजपा डॉ. महेश शर्मा को 2024 के चुनाव में त्यागी समाज की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. हालांकि त्यागी समाज भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. ऐसे में बीजेपी और डॉ. महेश शर्मा को चुनाव से पहले इनकी नाराजगी खत्म करने के लिए जल्द कदम उठाना चाहिए.
वहीं, करीब दो दशकों से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को कवर कर रहे दैनिक जागरण अखबार के गौतमबुद्ध नगर ब्यूरो चीफ और ग्रेटर नोएडा प्रेस क्लब के अध्यक्ष धर्मेंद्र चंदेल ने कहा
“ये बिल्कुल सही बात है की त्यागी समाज फिलहाल के परिस्थितियों में भाजपा और डॉ. महेश शर्मा से नाराज है. लेकिन सच ये भी है कि त्यागी समाज भाजपा का वोटर माना जाता है. साथ ही त्यागी को ब्राह्मण का ही खाप माना जाता है. ऐसे में डॉ. महेश शर्मा से नाराजगी का असर फिलहाल तो दिख रहा लेकिन 2024 के चुनाव में इसका असर कितना होगा ये देखने वाली बात है. क्योंकि चुनाव में अभी समय है. मगर हालिया जो दो ऑडियो वायरल हुए हैं, उससे महेश शर्मा को नुकसान हो सकता है.”
धर्मेंद्र चंदेल
स्थानीय वेब पोर्टल ट्राइसिटी टुडे के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार राकेश त्यागी ने बताया कि ‘त्यागी समाज डॉ. महेश शर्मा से इसलिए नाराज है क्योंकि उन्होंने इस पूरे मसले पर एकतरफा कार्रवाई के लिए प्रशासन पर दबाव बनवाया था. श्रीकांत की पत्नी से पुलिस द्वारा गलत व्यवहार किया गया. त्यागी समाज की नाराजगी फिलहाल भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकती है. महेश शर्मा द्वारा जो चिठ्ठी जारी की गई, उसमें भी ये कहा गया था कि मेरठ के सांसद का फोन आने के बाद वह सोसायटी में गए थे. क्योंकि पीड़ित ऐना अग्रवाल उनकी रिश्तेदार हैं. हालांकि की मेरठ के सांसद ने इस बात से इनकार कर दिया. उसके बाद डॉ महेश शर्मा का जो ऑडियो वायरल हुआ उस से साफ है कि उनका इस मामले में हस्तक्षेप था.’
दूसरी तरफ वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाराशर का मानना है कि ‘इस मामले का जातिकरण बेहद दुखदाई है. इसके जिम्मेदार सांसद डॉ. महेश शर्मा ही हैं. 2009 के चुनाव से ही डॉ. महेश शर्मा जिले में जातीय समीकरण बैठा रहे हैं. कभी गुर्जर और राजपूत गठजोड़, तो कभी राजपुत और ब्राह्मण का गठजोड़. उसी का परिणाम है कि जिले में हर जाति के लोग अब डॉ महेश शर्मा का विरोध कर रहे हैं.’
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