उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में भारत नेपाल के सीमावर्ती गावों में चीनी की खपत अचानक से बढ़ गई है. यहा एक-एक गांव में हर रोज लगभग 80 से 120 पिअकप चीनी की खपत है और ये सामान्य दिनों से एक हजार गुना अधिक है. 3 हजार से 5 हजार लोगों की आबादी वाले गांव में 7200 कुंतल चीनी की खपत हर रोज हो रही है.
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हो रही है चीनी की तस्करी
यूपी के महराजगंज जिले में भारत-नेपाल के सीमावर्ती गांवों में अचानक से चीनी की खपत बढ़ गई है. ये तब हुआ है जब नेपाल में चीनी के भाव आसमान छूने लगे हैं. नेपाल में एक किलो चीनी का भाव भारतीय मुद्रा के हिसाब से 58 से 60 रुपये तक है. वहीं भारत के खुदरा बाजार मे चीनी के रेट 41 रुपये हैं. इस हिसाब से प्रति किलो 19 से 20 रुपये के अंतर का लाभ उठाकर तस्कर धड़ल्ले से चीनी की तस्करी कर रहे हैं.
ये हैं गुप्त रास्ते जहां से हो रही तस्करी
चीनी के अलावा यहां से खाद, स्क्रैप, मछली और मादक पदार्थो की तस्करी जोरों पर चल रही है. जिले में भारत नेपाल की 84 किलोमीटर सीमा एक दूसरे से सटी है. यहां भारतीय सीमा के झुलनीपुर, बहूआर, लक्ष्मीपुर, रेंगहिया, ठूठीबारी, बरगदवा, परसामलिक, भगवानपुर, सोनौली, नौतनवा आदि बाजारों से खुली सीमा का लाभ उठाकर नेपाली नागरिक भी अपनी जरूरत के सामानों की खरीदारी करके नेपाल ले जाते हैं.
इन्हीं पगडंडियों के रास्ते का इस्तेमाल करके तस्कर धड़ल्ले से तस्करी कर रहे हैं. इस तस्करी में कस्टम,एसएसबी और लोकल पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. लोगों का मानना है कस्टम की मिलीभगत से केवल जीएसटी पेपर पर गाड़िया धड़ल्ले से बॉर्डर सीमावर्ती गांवों से नेपाल में घुस रही है. जबकि एक निश्चित मात्रा के बाद इन्हें बिल की जरूरत होती है.
लक्ष्मीपुर चौकी इंचार्ज पर भारी पड़ रहे तस्कर
भारत-नेपाल सीमा पर वर्षो से तस्करों की पहली पसंद लक्ष्मीपुर चौकी के पगडंडी रास्ते से चीनी की तस्करी बढ़ गई है. तस्करों के रसूख के आगे चौकी इंचार्ज लाचार हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां पर तस्करी कम ज्यादा होती रहती है, लेकिन कभी रुकी नहीं है. यह सब पहले तो रात के अंधेरे में होता था, लेकिन चौकी इंचार्ज के सीधापन की वजह से तस्कर अब दिन के उजाले में तस्करी कर रहे हैं. यहां पर मुख्य रूप से चीनी, खाद, स्क्रैप, मछली और मादक पदार्थो की तस्करी जोरों पर चल रही है.
बॉर्डर पर कस्टम की भूमिका सवालों के घेरे में
इंडो नेपाल बॉर्डर के सीमावर्ती गांवों के रास्ते चीनी की तस्करी को लेकर कस्टम की भूमिका सवालों के घेरे में है. सूत्रों की मानें तो यह सब कस्टम विभाग की देख रेख में हो रहा है. तस्करी के लिए जाने वाली हर गाड़ी का कस्टम पर रेट फिक्स है. लोगों का मानना है कि बिना कस्टम,एसएसबी और यूपी पुलिस की मिलीभगत के पत्ता भी नहीं हिल सकता.
पैसा लेकर कस्टम विभाग तस्करों को सहूलियत देता है और केवल जीएसटी बिल पर चीनी लदी गाड़िया धड़ल्ले से बॉर्डर के गांवों में जा रही है, जबकि गाड़ी में मॉल ज्यादा होने पर ई-वे बिल की जरूरत पड़ती है. बॉर्डर पर लगे कस्टम विभाग का इतिहास पहले से दागदार रहा है. इसके पहले भारत सरकार ने जिन वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगा रखी थी, उन वस्तुओं पर मोटी कमाई करके कस्टम नेपाल भेजता रहा है. कस्टम को आलू की पर्ची पर प्याज भेजने की महारत हासिल है.
अभियान चलाकर तस्करी रोकने का प्रयास किया जा रहा है. तस्करी में लिप्त जो भी व्यक्ति पाया जाता है उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है.
कौस्तुभ कुमार, पुलिस अधीक्षक महराजगंज
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