आखिर क्यों इतनी खास है इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, जानें ‘पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड’ कहने की पीछे की कहानी

पलक खरे

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Prayagraj News: भारत में शिक्षा के स्तर को स्थापित करने और उसे बनाए रखने में पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड कहे जाने वाली इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) का बहुत ही बड़ा योगदान है. इसकी स्थापना 23 सितंबर, 1887 को हुई थी. इससे पहले इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, कोलकाता विश्वविद्यालय के एक शाखा के रूप में काम करती थी. यह भारत की चौथी सबसे पुरानी और उत्तर प्रदेश की पहली यूनिवर्सिटी है.

इस यूनिवर्सिटी की लाल-पीली दीवारों में भारत की राजनीति, साहित्य, कला और समाज के गौरव का इतिहास समाया हुआ है. यहां से कई प्रसिद्ध नेता, लेखक, कलाकार और समाजसेवी निकले हैं, जिन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस यूनिवर्सिटी को पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड का दर्जा क्यों दिया गया? इसका इतिहास क्या है? हम आपको बताते हैं.

‘पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड’ क्यों कहा गया?

1887 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई, जो उस समय भारत की पांचवीं यूनिवर्सिटी थी. यह मध्य भारत में एकमात्र यूनिवर्सिटी थी. इससे पहले कलकत्ता (Kolkata), मद्रास (Madras), बॉम्बे (Bombay) और पंजाब (Punjab) यूनिवर्सिटियां चार दिशाओं में स्थित थी. इसलिए यह राजपूताना से लेकर बंगाल तक के छात्रों के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनी. इसके अलावा, उच्च स्तरीय अध्ययन और अध्यापन के कारण इसे ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कहा गया.

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अंग्रेज़ी अफसरों का रहा प्रभुत्व

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) ने स्थापना के कई सालों बाद तक अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखी. इसके पीछे शैक्षणिक गुणवत्ता और अंग्रेजों का प्रभुत्व ये दोनों कारण थे. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने इलाहाबाद को अपनी राजधानी बनाया. यह शहर और संस्थान अंग्रेज़ी शासकों की निगरानी में थे. इससे विश्वविद्यालय को अंग्रेजी अफसरों का समर्थन और संरक्षण मिला.

इसके साथ ही, इस यूनिवर्सिटी ने हिंदी साहित्य, इतिहास, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों में उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान की थी, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ गई. ऐसे में, कई प्रतिष्ठित अंग्रेज़ इस यूनिवर्सिटी का आदर करने आए थे, जिनमें रानी विक्टोरिया भी शामिल थीं. इन सभी कारणों से इस यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा लंबे समय तक बरकरार रही.

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भारत के संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर विलियम म्योर (Sir William Muir) का उद्देश्य उत्तर भारत में एक ऑक्सफोर्ड (Oxford) जैसे शिक्षा केंद्र की स्थापना करना था. तब के समय में यहां शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र नहीं था और कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्थाएं थीं. 24 मई 1867 को इलाहाबाद में सर विलियम म्योर ने एक स्वतंत्र महाविद्यालय और एक विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना बनाई.

म्योर सेंट्रल कॉलेज की स्थापना

भारत में उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए इलाहाबाद के कुछ उत्साही लोगों ने एक महाविद्यालय खोलने का फैसला किया. लाला गयाप्रसाद, बाबू प्यारे मोहन बनर्जी, मौलवी फरीदुद्दीन, मौलवी हैदर हुसैन, राय रामेश्वर चौधरी जैसे लोगों ने मिलकर एक आंदोलन चलाया. आंदोलन के माध्यम से लोगों ने 16 हज़ार रुपए एकत्र किए. वहीं, विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 1869 में स्थान का चयन किया गया. प्रस्तावित महाविद्यालय का भवन निर्मित होने तक ‘दरभंगा कैसेल’ भवन को तीन वर्ष के लिए किराए पर लिया गया. 22 जनवरी 1872 को स्थानीय सरकार ने महाविद्यालय खोलने के ज्ञापन को भारत सरकार के पास स्वीकृति के लिए भेजा. स्वीकृति मिलने पर महाविद्यालय का नाम सर विलियम म्योर के नाम पर रखा गया और जुलाई 1872 में ‘म्योर सेंट्रल कॉलेज’ ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया.

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ऐसे हुई विश्वविद्यालय की स्थापना

‘म्योर कॉलेज’ की आधारशिला 9 दिसंबर 1873 को रखी गई. कॉलेज के भवन का डिज़ाइन डब्ल्यू एमर्सन ने बनाया था. कॉलेज का भवन पूरा होने में 12 साल लग गए. इस भवन का औपचारिक उद्घाटन 8 अप्रैल 1886 को वायसराय लार्ड डफरिन ने किया. कॉलेज का भवन अपनी भव्य शैली और स्थापत्य के लिए जाना जाता है. यह प्राचीन और पाश्चात्य विचारों और परंपराओं के मिलन का प्रतीक है. इस कारण यह पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है.

इलाहाबाद में उच्च शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए स्थानीय लोगों ने एक लंबा संघर्ष किया. आखिरकार, 1887 में एक्ट XV-11 पास हुआ और विधिवत इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. विश्वविद्यालय की पहली प्रवेश परीक्षा 1889 में हुई. इस परीक्षा में पूरे भारत से छात्रों ने हिस्सा लिया. इस परीक्षा के माध्यम से इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश भर के छात्रों को उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान किए.

देश को दिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री

इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को दो राष्ट्रपति दिए हैं. डॉ. शंकर दयाल शर्मा और जाकिर हुसैन दोनों ही इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं. इसके अलावा, तीन प्रधानमंत्री भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले हैं. गुलजारी लाल नंदा, विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर ने भी इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की.

देश को दिए गई मुख्यमंत्री

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से छह मुख्यमंत्रियों ने भी शिक्षा प्राप्त की है. इनमें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, मदन लाल खुराना, विजय बहुगुणा और अर्जुन सिंह शामिल हैं.

देश को दिए साहित्यकार

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कई ऐसे साहित्यकार भी निकले हैं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है. इनमें महादेवी वर्मा, फिराक गोरखपुरी, भगवती चरण वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, कमलेश्वर और मित्रा नंदन पंत जैसे नाम शामिल हैं.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों की सूची में कई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति भी शामिल हैं, जिनमें राजनेता, न्यायाधीश, प्रशासनिक अधिकारी, वैज्ञानिक, कलाकार और खिलाड़ी भी शामिल हैं.

यूनिवर्सिटी का नहीं बदला नाम

साल 2018 में इलाहाबाद (Allahabad) का नाम बदलकर प्रयागराज (Prayagraj) किया गया था. लेकिन, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का नाम नहीं बदला गया क्योंकि विश्वविद्यालय के कई सदस्यों और एल्युमिनाई ने इसका विरोध किया. उनका तर्क था कि शहर का नाम बदलने के बावजूद मद्रास और कलकत्ता यूनिवर्सिटी के नाम नहीं बदले गए, तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का नाम क्यों बदला जाए. इसके अलावा नाम बदलने के लिए भारी मात्रा में दस्तावेजी प्रक्रिया करनी पड़ेगी, जो कि एक मुश्किल और लंबी प्रक्रिया होगी.

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