UP News: बाबा नारायण सरकार हरि उर्फ भोले बाबा का अभी तक कुछ पता नहीं चला है. जिस बाबा के सत्संग में भगदड़ मची और 121 लोगों की मौत हुई, अब उसको लेकर कई हैरान कर देने वाली कहानियां सामने आ रही हैं. बाबा की कई करतूत अभी तक सामने आ चुकी हैं. बता दें कि बाबा की अपनी सेना, अपने सुरक्षा गार्ड तक हैं. माना जा रहा है कि बाबा अपने आश्रम में अपनी अलग सत्ता चलाता है. बता दें कि सत्संग में मची भगदड़ के दौरान हुई 121 लोगों की मौतों का जिम्मेदार अब इस बाबा को ही बताया जा रहा है.
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सूरजपाल जाटव उर्फ नारायण साकार हरि पर फिलहाल हर किसी की नजर है. मगर सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये भी है कि बाबा को लेकर सरकार, विपक्षी दल और यूपी पुलिस तक ने चुप्पी साध रखी है. किसी भी अपराधी को नहीं छोड़ने का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस अब तक इस बाबा पर हाथ डालने से बच रही है.
आखिर बाबा के खिलाफ पुलिस, सरकार और विपक्ष ने क्यों साधी है चुप्पी?
दरअसल सूरजपाल जाटव उर्फ नारायण साकार हरि के सत्संग में आने वालों में एक बड़ी संख्या उस गरीब तबके की है, जो दो वक्त की रोटी कमाने में ही बिजी रहता है. ये वो वर्ग है, जो इलाज करवाने के लिए भी अपना सामान गिरवी रखता है. बता दें कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोग ही बाबा के सत्संग में सबसे ज्यादा जाते हैं. एक सत्संग में लाखों लोगों की भीड़ जमा हो जाती है. माना जा रहा है कि यही बाबा की सबसे बड़ी ताकत है.
बाबा का वोट बैंक है काफी मजबूत
बाबा की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूपी की मुख्य विपक्ष दल यानी सपा ने भी बाबा को लेकर चुप्पी साध रखी है. दरअसल साल 2023 जनवरी में सपा चीफ अखिलेश यादव खुद बाबा के कार्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं. दरअसल बाबा का सबसे ज्यादा प्रभाव मैनपुरी, कासगंज, एटा, अलीगढ़, हाथरस, आगरा और फर्रुखाबाद में हैं. यहां वह इलाके हैं, जहां सपा का पीडीए फार्मूले मजबूत है. ऐसे में सपा ने भी बाबा के खिलाफ चुप्पी रखनी ही सही समझी है.
दरअसल बाबा के पीछे जो लोग हैं, वह बाबा को ही अपना सब कुछ मानते हैं. वह बाबा के कहने पर कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक की अपने परिजनों और रिश्तेदारों को खोने के बाद भी ये लोग बाबा के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नहीं हैं. इनके लिए बाबा का आदेश ही परम आदेश हैं और वही सब कुछ हैं. ऐसे में ये पूरा बाबा का मजबूत वोट बैंक हैं और चुनावों में अक्सर ऐसे ही बाबाओं का आशीर्वाद जीत को आसान बनाता है.
बता दें कि शायद बाबा की यही ताकत भाजपा सरकार को भी बाबा के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक रही है. जिस तरह से 2024 लोकसभा चुनाव में दलित-पिछड़ा वोट बैंक भाजपा के हाथ से फिसला है, उसे देखते हुए भाजपा काफी सतर्क है. दूसरी तरफ उसके सामने अखिलेश का पीडीए है. ऐसे में भाजपा कोई भी राजनीतिक रिस्क शायद नहीं लेना चाहती है.
दरअसल जो दलित-पिछड़ा वर्ग साल 2024 के चुनाव में भाजपा से अलग हुआ है, वही वर्ग बाबा के पीछे खड़ा है. ऐसे में भाजपा नहीं चाहती कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जो चूक हुई, वह 2027 के विधानसभा चुनाव में हो. ये साफ है कि अगर बाबा के खिलाफ कार्रवाई होगी, तो उसके समर्थक इससे नाराज होंगे. शायद यही कारण है कि एफआईआर तक में बाबा का नाम पुलिस ने दर्ज नहीं किया है.
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