उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस बार दशहरे पर 350 साल की परंपरा टूटेगी. जिसमें लंकापति रावण के साथ उसके पुत्र मेघनाद और छोटे भाई कुंभकर्ण का पुतला दहन नहीं किया जाएगा. ये कोई अनायास नहीं है बल्कि सोच समझकर इसपर फैसला लिया गया है. चर्चा में ये बात आई कि मेघनाद और कुंभकर्ण तो अपने राजा के आदेश का पालन करते हुए बलिदान हुए थे. ऐसे में उनका पुतला जलाना उचित नहीं है. वे बुराई के प्रतीक नहीं हैं. उन्होंने तो अपने कर्तव्यों का पालन किया था. ऐसे में इस बार इस परंपरा को तोड़ने का निर्णय लिया गया है.
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ऐशबाग रामलीला समिति के संयोजक और सचिव आदित्य द्विवेदी ने बताया कि रामलीला समिति ने यह तय किया है कि इस बार दशहरे में रावण के साथ मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला दहन नहीं होगा. क्योंकि रावण के भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद ने बलिदान दिया था.
आदित्य द्विवेदी बताते हैं कि जब कुंभकर्ण को निद्रा से जगाया गया तब उसने पूछा कि आखिर उसे समय से पहले क्यों जगाया गया है. तो लंका के पदाधिकारियों ने बताया कि लंका पर राम की सेना ने आक्रमण कर दिया है. इसीलिए उसे समय से पूर्व जगाया गया है. कुंभकर्ण ने आक्रमण का कारण पूछा. पदाधिकारियों ने बतायाा कि महाराज रावण ने राम की धर्मपत्नी सीता का अपहरण कर उसे लंका ले आए हैं. जिसके चलते लंका पर युद्ध का खतरा मंडरा चुका है.
कुंभकर्ण अपने भाई रावण के पास गया और कहा-आप साक्षात जगदंबा को उठा लाए हैं. अब समूल विनाश निश्चित है. अभी भी समय है. अगर श्रीराम की पत्नी को वापस कर दिया जाए तो युद्ध टल सकता है. ऐसे में रावण ने कुंभकर्ण से कहा कि यदि तुम युद्ध में जाने से भयभीत हो तो मैं अकेले ही युद्ध कर लूंगा.रावण की यह बात सुनकर कुंभकर्ण ने कहा छोटे भाई के रहते बड़ा भाई युद्ध भूमि में जाए यह उचित नहीं.
आदित्य द्विवेदी ने यह भी बताया कि रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कुंभकर्ण ने समर भूमि में जाने से पहले रावण से कहा कि यदि वह वीरगति को प्राप्त हो जाता है तो समझ लीजिएगा कि शत्रु कोई और नहीं बल्कि स्वयं नारायण हैं. मेघनाद जब युद्ध भूमि में गया और राम-लक्ष्मण का सामना किया इस दौरान उन्होंने राम-लक्ष्मण पर कई शक्तियों का प्रयोग. ब्रह्मास्त्र से लेकर नारायणास्त्र तक, लेकिन सारे अस्त्र श्रीराम-लक्ष्मण की परिक्रमा करके वापस लौट आए.
यह दृश्य देख मेघनाद आश्चर्यचकित और अचंभित हो गया. जिसके बाद वह जान गया कि इन्हें युद्ध में पराजित नहीं किया जा सकता. वह युद्ध भूमि से अपने पिता को बताने आया था कि उनसे संधि कर लीजिए, लेकिन रावण ने मेघनाद से उल्टा कहा कि शत्रु के प्रभाव में आकर ऐसी व्याख्या और बखान ना करें. इन दोनों योद्धाओं ने अपना जीवन बलिदान किया था. ऐसे में अब उनका सम्मान होना चाहिए. इसीलिए समिति ने निर्णय किया है कि 350 साल की परंपराओं को तोड़कर नई परंपरा चालू की जाए.
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