महामना के कदमों से हुई थी BHU की स्थापना, जानें विश्वविद्यालय के निर्माण की दिलचस्प कहानी

रजत कुमार

15 Feb 2024 (अपडेटेड: 15 Feb 2024, 04:03 PM)

1360 एकड़ में फैले इस यूनिवर्सिटी का इतिहास भी बड़ा रोचक है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण की कहानी पर एक नजर डालते हैं.

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Varanasi News : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू का नाम देश के उन संस्थानों में लिया जाता है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं.  14 फरवरी को विश्वविद्यालय ने अपना 109वां स्थापना वर्ष मनाया.  BHU की स्थापना 1916 को बसंत पंचमी के दिन हुई थी. यही वजह है कि हर साल हिंदू तिथि के आधार पर BHU अपना स्थापना दिवस मनाता है. 1360 एकड़ में फैले इस यूनिवर्सिटी का इतिहास भी बड़ा रोचक है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण की कहानी पर एक नजर डालते हैं.

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रोचक है BHU के बनने की कहानी

BHU यानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय पंडित मदन मोहन मालवीय (Pandit Madan Mohan Malaviya), डॉ एनी बेसेंट और डॉ एस राधाकृष्णन जैसे महान लोगों के संघर्ष और सपने का प्रतीक है. बीएचयू के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि महामना मदन मोहन मालवीय चलते गए और बीएचयू बनता गया. 1916 में बसंत पंचमी के दिन ही महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने विश्वविद्यालय की नींव रखी थी. उस समय विदेशी शासन होने के बावजूद इस विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 1360 एकड़ जमीन महामना को दान में मिली थी.

दरभंगा नरेश ने दिया दान

BHU के निर्माण में मदन मोहन मालवीय को अनेकों कठनाइयों का सामना करना पड़ा. ब्रिटिश राज ने भी उनकी मुश्किलों को लगातार बढ़ाने का काम किया. बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने बीएचयू के निर्माण से पहले दरभंगा नरेश और मालवीय जी से 1 करोड़ रुपये मांग लिए. ब्रिटिश सरकार की तरफ से साफ कहा गया कि पहले 1 करोड़ दो फिर विश्वविद्यालय के निर्माण की इजाजत मिलेगी. फिर सबसे बड़ी चुनौती विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए जगह की थी. 

रखी ये कड़ी शर्त

बता दें कि महामना मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू के निर्माण के लिए काशी नरेश से जगह दान में मांगी थी. मिली जानकारी के मुताबिक, काशी नरेश ने बीएचयू के लिए जगह दान में देने की बात की. मगर मालवीय जी के सामने इसके लिए अनोखी और अजीब शर्त भी रख दी.  दरअसल काशी नरेश ने शर्त रखी कि एक दिन में मालवीय जी पैदल चलकर जितनी जमीन नाप लेंगे, उतनी ही जगह उन्हें विश्वविद्यालय के लिए दान में मिल जाएगी. महामना भी इसके लिए फौरन तैयार हो गए. माना जाता है कि इसके बाद महामना मदन मोहन मालवीय दिन भर पैदल चलते रहे और जगह नापते गए. माना जाता है कि मालवीय जी पूरे दिन जितना चल पाए और जगह नाप पाए काशी नरेश ने उतनी ही जगह उन्हें दान में दे दी. 

बता दें कि अंग्रेजी शासन के दौर में देश में एक स्वदेशी विश्वविद्यालय का निर्माण मदन मोहन मालवीय की बड़ी उपलब्धि थी. मालवीय ने विश्वविद्यालय निर्माण में चंदे के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी. उन्होंने 1 करोड़ 64 लाख की रकम जमा कर ली थी.

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