काशी के ज्ञानवापी परिसर पर कानूनी विवाद में अब हुई व्यास परिवार की एंट्री हो गई है. भक्त और भगवान विश्वेश्वर और माता श्रृंगार गौरी के बाद अब पुजारी भी काशी की कोर्ट में पहुंच गए हैं.
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मंदिर के पुश्तैनी पुजारी व्यास परिवार की 15वीं ज्ञात पीढ़ी के वंशधर शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास ने वाराणसी की जिला अदालत में अर्जी लगाकर कर उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983 की धारा 13 और 14 के मुताबिक बाबा आदि विश्वेश्वर के प्राचीन मंदिर के तहखाने में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मौजूद देवी-देवताओं को पूजा का पांच सौ साल से चला आ रहा पुश्तैनी अधिकार बहाल करने की गुहार लगाई है.
व्यास परिवार के वंशज शैलेंद्र पाठक के वकील हरि शंकर जैन के मुताबिक, व्यास परिवार ने अपने दावे के साथ 1551 से अब तक की वंशावली भी कोर्ट के समक्ष रखी है. व्यास परिवार की जिम्मेदारी मंदिर में देवी-देवताओं की दैनिक नित्य सेवा-पूजा, भोगराग की व्यवस्था, कथा सुनाना और धार्मिक आध्यात्मिक अनुष्ठानों का पौरोहित्य करना रहा है. इसके अलावा सदियों पुराने पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्य भी अपनी अर्जी में रखे हैं.
पाठक व्यास का कहना है,
“साल 1993 तक उनके पुरखे आदि विश्वेश्वर मंदिर और अब ज्ञानवापी मस्जिद नाम से जाने जा रही इमारत के तहखाने में मौजूद वीरभद्र महेश्वर, महाकालेश्वर, तारकेश्वर, अविमुक्तेश्वर, मां श्रृंगार गौरी, गणेश, हनुमान और नंदी के विग्रह यानी प्रतिमाओं के अलावा अन्य कई अदृश्य देवी-देवताओं की निर्बाध सेवा पूजा भोग राग 1993 के नवंबर दिसंबर तक करते रहे. फिर 1993 के अंतिम हफ्तों में रूकावटें डाली जाने लगीं. फिर प्रशासन ने मौखिक आदेश देकर हमें रोक दिया था. हमारे अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के मुताबिक ही बहाल किए जाएं.”
व्यास वंशावली के पाठक ने अपनी याचिका में कहा है कि आदि विश्वेश्वर के भव्य मंदिर में पांच मंडप थे. इन पंच मंडपों में ज्ञान मंडप, मुक्ति मंडप, वैराग्य मंडप, शोभा मंडप और श्रृंगार मंडप थे. इन्हीं पंच मंडपों के पास देवी श्रृंगार गौरी स्थापित थीं. आदि विश्वेश की नौ शक्तियों की स्थापना उनके चारों ओर थी. मंदिर परिसर विध्वंस होने से पहले तक यहां मुख निर्मलिका, ज्येष्ठा, सौभाग्य, श्रृंगार, विशालाक्षी, ललिता, भवानी, मंगला और महालक्ष्मी गौरी की सेवा पूजा होती रही.
अपनी अर्जी में पाठक ने कहा है कि उनको अपने संविधान प्रदत्त अपने आराध्य की दैनिक नित्य सेवा पूजा के अधिकार का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाए. दूसरे पक्ष यानी मस्जिद के पैरोकारों को वहां दाखिल होने से रोका जाए.
इस बाबत लोहे के जाल और बाड़बंदी में समुचित बदलाव भी करने का निर्देश दिया जाए, ताकि निर्बाध और सुरक्षित ढंग से देवी देवताओं की नित्य सेवा पूजा की जा सके.
याचिका में कहा गया है कि तहखाने और परिसर की दीवारों पर मौजूद देवी देवताओं के प्रतीक चिह्न और विग्रह मूर्तियों को बिगाड़ने, नष्ट करने नुकसान पहुंचाने से रोका जाए.
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