क्या है ज्ञानवापी की असल कहानी, कैसे पता चलेगा कि शिवलिंग है या फव्वारा? एक्सपर्ट से समझिए

आशुतोष मिश्रा

18 May 2022 (अपडेटेड: 14 Feb 2023, 09:15 AM)

ज्ञानवापी को लेकर उठे विवाद पर अलग-अलग पक्षों के अलग-अलग तर्क हैं. कोई इसे सांस्कृतिक विरासत मानता है, तो कोई इसे धार्मिक स्थल. ज्ञानवापी के…

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ज्ञानवापी को लेकर उठे विवाद पर अलग-अलग पक्षों के अलग-अलग तर्क हैं. कोई इसे सांस्कृतिक विरासत मानता है, तो कोई इसे धार्मिक स्थल. ज्ञानवापी के भीतर अदालत के आदेश पर सील किए गए शिला को हिंदू पक्ष शिवलिंग मान रहा है, तो मुस्लिम पक्ष उसे फव्वारा करार दे रहा है. मामला अदालत की चौखट पर है, लेकिन इस विवाद को इतिहास और इतिहासकारों के नजरिए से देखने की भी जरूरत है. इसीलिए इस प्रकरण पर इतिहास की रोशनी डालने के लिए यूपी तक ने जाने-माने इतिहासकार और इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्रा से खास बातचीत की है.

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ज्ञानवापी का उल्लेख पहली बार कब हुआ था?

इतिहासकार ललित मिश्रा कहते हैं,

“ज्ञानवापी प्राचीन काल के विश्वेश्वर मंदिर का एकांश था, जिसका जिक्र स्कंद पुराण में किया जाता है. मगर हमारे पास इसका नवीनतम उल्लेख भी उपलब्ध है जोकि 16वीं शताब्दी में लिखे गए ग्रंथ गुरुचरित्र में होता है. जो कि महाराष्ट्र के दत्तात्रेय संप्रदाय के सन्यासियों द्वारा लिखा गया है. उसमें ज्ञानवापी में किए गए स्नान और उसके उपरांत मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करने का उल्लेख है. गुरु चरित्र का श्लोक नंबर 57 कहता है, “ज्ञानवापीं करी स्नान. नंवदका श्वर ऄचोन. तारका श्वर पूजोन. पुढें जावें मग तुवां ॥५७॥”

ललित मिश्रा

उन्होंने कहा, “यानी पौराणिक कथाओं के अलावा 16वीं शताब्दी में दत्तात्रेय संप्रदाय ने जो ग्रंथ लिखा था, उसमें भी ज्ञानवापी का जिक्र है, लेकिन इसका उल्लेख मुगलिया सल्तनत में भी पाया जाता है. मसिर-ए-आलमगिरी किताब में औरंगजेब द्वारा जारी किए गए तमाम फरमान दर्ज किए गए हैं, जो 1658 से लेकर 17वीं सदी तक के तमाम उसके आदेशों को समावेशित करता है. इस किताब में औरंगजेब के आदेशों के क्रोनोलॉजिकल रिकॉर्ड हैं.”

इतिहासकार ललित मिश्रा इस किताब के हवाले से बताते हैं, “16वीं सदी में औरंगजेब ने 8 अप्रैल 1669 को मुगल सियासत में टट्टा और मुल्तान जो कि इस समय पाकिस्तान में है और बनारस के तमाम मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया. औरंगजेब का यह फरमान मसिर-ए-आलमगिरी में दस्तावेज किया गया है. किताब में जिक्र है कि 2 जून 1669 को औरंगजेब की सभा में उसे यह जानकारी दी गई कि उसके फरमान पर अमल किया जा चुका है यानी टट्टा मुल्तान और बनारस के मंदिरों को ध्वस्त किया जा चुका है.”

यानी 2 महीने के भीतर औरंगजेब के आदेश की तामील की गई और तीन मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया, था जिसका जिक्र नवीनतम मुगल इतिहास में दर्ज है. मगर इतिहासकार मानते हैं कि मस्जिद का निर्माण कब हुआ इसकी जानकारी इतिहास में दर्ज नहीं है.

ज्ञानवापी में शिवलिंग है या फव्वारा?

इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्रा बताते हैं, “यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है क्योंकि मुगल काल में जितने मुगल गार्डन बनाए गए जो आज भी भारत में मौजूद हैं, उसमें सफदरजंग मकबरे में एक मुगल फव्वारा मजबूत मौजूद है. जो 1780 के दौरान बना था. अगर हमारे विशेषज्ञ चाहें या एएसआई के लोग चाहें तो सफदरजंग के फव्वारे और ज्ञानवपी में जो कथित शिवलिंग प्राप्त हुआ है, उन दोनों का कंपैरेटिव एनालिसिस किया जा सकता है और ऐसे में निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन नहीं होगा.”

उन्होंने कहा, “ऐसा माना जाता है कि जब ज्ञानवापी मंदिर को नष्ट किया गया, तो शिवलिंग बचाने की कोशिश की गई होगी. कहा जाता है कि उस समय पंडितों ने शिवलिंग को बचाने के लिए उसे कहीं छिपा दिया था, लेकिन उसे कहां छिपाया गया था इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेजी उल्लेख मौजूद नहीं है.”

ललित मिश्रा यह भी कहते हैं,

“ज्ञानवपी में कोई फव्वारा कार्यरत था, इसके भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं. अगर 40-50 साल पहले भी फव्वारा फंक्शनल था, तो उससे संबंधित फोटो या दस्तावेज मौजूद नहीं है. इसलिए फव्वारे के होने पर भी सवाल खड़ा हुआ है. लेकिन उन लेखों के मुताबिक शिवलिंग को बचाने का प्रयत्न किया गया था. मगर शिवलिंग को कहां रखा गया और वह उस स्थल पर कैसे पहुंचा यह सिलसिला अभी भी अज्ञात है. इस पर हमें सरकमस्टेंशियल एविडेंस को स्वीकार करना चाहिए.”

ललित मिश्रा

तो शिवलिंग मानने का आधार क्या है?

इतिहासकार ललित मिश्रा ने कहा, “मैंने मंदिर के भ्रमण के दौरान देखा कि नंदी की प्रतिमा वर्तमान शिवद्वार की तरफ नहीं है, जो कि एक आश्चर्य का विषय है. तब मैंने तत्कालीन पंडितों से पूछा था कि आखिर यह निर्माण कैसा है जहां मंदिर कहीं और है मूर्ति कहीं और देख रही है जो कि एक अपवाद है. एक लॉजिकल कंक्लुजन यह हो सकता है कि संभवत जिस तरफ नंदी का मुख्य उसी तरफ ही प्राचीनतम विश्वेश्वर मंदिर हुआ करता था, जहां फिलहाल मस्जिद मौजूद है.”

तो क्या ताज महल, कुतुब मीनार, जामा मस्जिद के नीचे भी मंदिरों के अवशेष हैं?

ललित मिश्र ने कहा, “इतिहासकार बताते हैं कि मुगलिया दस्तावेज यह इशारा करते हैं कि कुतुब मीनार के नीचे जो मस्जिद है उसके पूर्वी हिस्से में एक आलेख मिला जिसमें 27 मंदिरों के भग्नावशेष के बनाए जाने का जिक्र और पुष्टि होती है.”

रोज उठ रहे विवादों का समाधान कैसे?

इतिहासकार ललित मिश्रा ने कहा, “भारत का इतिहास सीधा सपाट नहीं है. ऐसे में एक राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए थी कि ऐसे विवादित जगहों की पहचान हो ताकि समरसता भी बनी रहे. उदाहरण के तौर पर इंडोनेशिया में ऐसे विवादों को एक राष्ट्रीय नीति के तहत इनका समाधान किया गया, जो कि स्वीकारोक्ति के साथ होता है.”

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