रामपुर लोकसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी ने जीत दर्ज करा के रामपुर के राजनीतिक इतिहास में नई परंपराओं की बुनियाद रखी है. उपचुनाव के मतदान के स्वरूप ने यह साफ कर दिया की भड़काऊ भाषणों और धार्मिक मुद्दों से ऊपर उठकर लोगों ने अपने क्षेत्र के विकास के नाम पर वोट दिया है. मतदान के समय वोटर की सोच नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक थी.
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समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले रामपुर में 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान ने भारतीय जनता पार्टी की जयप्रदा को 1 लाख 10 हजार वोटों से हरा दिया था. उस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को भी 35 हजार वोट मिले थे. इस बार सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच था. अगर यह मान लें कि कांग्रेस का वोटर भी भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले समाजवादी के प्रत्याशी को चुनेगा तो यह लीड डेढ़ लाख वोटों की हो जाती है.
बीजेपी 42 हजार वोटों से कैसे जीत गई?
इसी तरह 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी अगर रामपुर की 5 विधानसभाए जो लोकसभा के अंतर्गत आती हैं उनमें भी समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के वोटों पर नजर घुमाएं तो इनका अंतर लगभग डेढ़ लाख वोटों का बना रहा. ऐसे में इस बार अचानक भारतीय जनता पार्टी 42 हजार वोटों से कैसे जीत गई ? यह एक बड़ा सवाल है.
अखिलेश की चुनाव प्रचार से दूरी भी एक वजह
इस सवाल का जवाब पाने के लिए अगर राजनीतिक बात करें तो समाजवादी पार्टी के चुनाव की कमान सीधे तौर पर 27 माह बाद जेल से छूटकर आए अस्वस्थ आजम खान के कंधों पर थी. समाजवादी पार्टी का कोई बड़ा नेता रामपुर में चुनाव प्रचार के लिए नहीं आया. खुद अखिलेश यादव ने भी उपचुनाव में चुनाव प्रचार से दूरी बनाकर रखी. जबकि दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया. उनका गांव-गांव कस्बे-कस्बे और नगर क्षेत्र का कार्यकर्ता और संगठन पूरी तरह से चुनाव में जुटा रहा.
बीजेपी ने लगाया एड़ी-चोटी का जोर
उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने खुद रामपुर में दो-दो जनसभाओं को संबोधित किया. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी रामपुर पहुंचे. इसके अलावा वित्त मंत्री सुरेश खन्ना तो रामपुर में ही डेरा ही डाला हुए थे. वे अलग-अलग वर्गो से मिलकर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को जिताने की अपील कर रहे थे.
दलित वर्ग के वोटों को लेकर था बड़ा संशय
इस उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया था. इसलिए दलित वर्ग के वोटों को लेकर एक बड़ा संशय था कि आखिर ये वोट किसको देंगे. ऐसे में आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति ज्वाइन करने वाले मंत्री असीम अरुण को बीजेपी ने रामपुर भेजा. जिन्होंने दलित प्रभाव वाले दर्जनों गांवों में जाकर जनता से सीधा संवाद किया और भाजपा के लिए वोट मांगे. दर्जन भर से ज्यादा मंत्रियों के दौरे लगे और संगठन के लोग तो अनगिनत ही आते रहे.
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के इस परिश्रम को जनता ने सराहा और उनके बैंक वोट से हटकर मुस्लिम वोटरों ने भी मंत्रियों के दौरों में की गई घोषणाओं और वायदों पर भरोसा जताया. खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने रामपुर में बेहद संयमित भाषण दिया. सरकार की योजनाएं गिनाई और मंच से जनता से यह सवाल पूछा कि सरकारी योजनाओं में कोई भेदभाव तो नहीं हुआ. सबको बराबर से राशन मिला? योजनाओं में सबको बराबरी का हिस्सा मिला या नहीं मिला.
ये वोट यदि सपा के खाते में जाते तो पलट जाते नतीजे
दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के ना आने को जनता ने अहंकार माना. खासकर यह नाराजगी रामपुर की शाहबाद विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा ही देखने को मिली, जो कि यादव बाहुल्य क्षेत्र है. जहां पिछली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी श्रीमती राजबाला मात्र 6000 वोटों से विजय प्राप्त कर पाई थी. वहां इस बार भारतीय जनता पार्टी को 26,500 से भी अधिक वोटों की बढ़त प्राप्त हुई. अगर भाजपा को मिलने वाले 22,000 ज्यादा वोट अगर सपा की झोली में जाते तो शायद नतीजे कुछ और ही हो सकते थे.
मतदान में भी रही गिरावट
इस बार मतदान में भारी गिरावट देखने को मिली. 2022 के विधानसभा चुनावों में हुए 10 लाख 76 हजार के मतदान के मुकाबले इस बार की वोटिंग मात्र 7 लाख तक सिमटकर रह गई. पौने चार लाख वोटरों के घर से ना निकलने के पीछे का कारण भी चुनाव के नतीजे तय किए जाने का एक कारक रहा. आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले 2022 विधानसभा चुनाव में जहां पांचो विधानसभा सीटों में भारतीय जनता पार्टी को मिले 40,7000 वोटों के मुकाबले इस बार 37,0000 वोट प्राप्त करने में कामयाबी हासिल हुई, लेकिन समाजवादी पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में प्राप्त 552000 वोटों के मुकाबले मात्र 325000 वोटों पर ही सिमट गई. इस तरह से अगर देखा जाए तो वोटरों के प्रतिशत में जो भी कमी हुई वह समाजवादी पार्टी के ही वोटर में हुई. ये बड़ी तादाद में मतदान नहीं कर सके.
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