समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव की आज जयंती है. मुलायम उन नेताओं में से रहे हैं जिनके लंबे सियासी सफ़र में उन्होंने राजनीति के कई पड़ाव तय किए. मुलायम ने खुद कई नारे अपनी प्राथमिकताओं को बताने के लिए दिए. इसमें समान शिक्षा के लिए ‘शिक्षा होगी एक समान तभी बनेगा हिन्दोस्तान’ जैसा नारा दिया. साथ ही राम मनोहर लोहिया से प्रभावित और उनकी विचारधारा पर समाजवादी राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव ने स्वास्थ्य, शिक्षा और आम लोगों के लिए महंगाई को प्राथमिकता बताते हुए नारा दिया था.मुलायम सिंह खुद जब अपनी राजनीति के शिखर पर थे तब उन्होंने ‘रोटी-कपड़ा सस्ती हो, दवा-पढ़ाई मुफ़्ती हो’ का नारा दिया था.
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मुलायम ऐसे नेता भी रहे जिनकी लोकप्रियता और कार्यकर्ताओं पर उनके प्रभाव ने भी कई नारों (स्लोगन) को जन्म दिया. मुलायम के सियासी सफ़र की शुरुआत से लेकर उनके राजनीति के शिखर तक पहुंचने और उसके बाद उनके बेटे अखिलेश यादव की राजनीति के दौरान भी ये नारे सुनाई पड़ते रहे.
जिसका जलवा क़ायम है, उसका नाम मुलायम है
मुलायम सिंह यादव के प्रभाव और कार्यकर्ताओं में उनकी लोकप्रियता की झलक इस नारे में मिलती है. यही वो स्लोगन है जो अंत तक जब भी मुलायम कार्यकर्ताओं के बीच गए सुनाई पड़ता रहा. इस नारे की कहानी भी कम रोचक नहीं. 2004 में मुलायम सिंह यादव प्रयागराज (उस समय इलाहाबाद) पहुंचे. रामबाग़ के सेवा समिति विद्या मंदिर के मैदान में मुलायम को सुनने के लिए बहुत भीड़ जमा थी. मुलायम का हेलीकॉप्टर पहुंचा तो भीड़ ने नारा लगाया ‘जिसका जलवा क़ायम है उसका नाम मुलायम है.’ भीड़ को देख कर गदगद मुलायम ने मंच में माइक पर पहुंचते ही कहा ‘आप सबकी वजह से ही मेरा जलवा क़ायम है.’ बस फिर क्या था समाजवादी कार्यकर्ताओं ख़ास तौर पर युवा कार्यकर्ताओं ने नारा लगाना शुरू किया…‘जिसका जलवा क़ायम है उसका नाम मुलायम है’
ऐसा ही एक और नारा मुलायम के नाम को लेकर बना, ये चुनावी नारा था. 2007 के चुनाव में ये नारा खूब सुनाई पड़ा जब मुलायम को मुख्यमंत्री बनते उनके कार्यकर्ता देखना चाहते थे. ये चुनावी नारा था और चुनावी सभाओं में ये नारा खूब लगाया गया. ख़ास तौर पर समाजवादी पार्टी की यूथ विंग के कार्यकर्ता हर सभा में इस नारे को लगाते देखे जा सकते थे. ये नारा था ‘नाम मुलायम, काम मुलायम, फिर एक बार मुलायम’ !! उस समय अखिलेश यादव युवा फ़्रंटल संगठन के इंचार्ज भी थे और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में हर सभा में जोश दिखायी पड़ता था.
मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम
ये मुलायम के नाम पर बना वो नारा था जिसकी वजह से मुलायम सिंह यादव को सबसे ज़्यादा आलोचना का शिकार होना पड़ा. बीजेपी ने धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगाया तो लोगों का भी ये मानना था कि राम के नाम को लेकर इस तरह का नारा बनाने के पीछे मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति थी. दरअसल ये बहुजन की राजनीति करने वाले कांशीराम और समाजवादी विचारधारा के नाम पर राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव के साथ आने का दौर था. 90 के दशक का ये वो समय था जब अयोध्या में बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद राजनीति तेज़ थी. कहा ये जाता है कि इस नारे को सबसे पहले मंच पर कांशीराम के समर्थक ख़ादिम अब्बास ने लगाया था. मुलायम और कांशीराम के साथ आने से उत्साहित होकर उन्होंने ऐसा किया था. उसके बाद ये नारा हिट हो गया.
हालांकि ये नारा उस समय खूब चला पर बाद में इस बात सफ़ाई भी दो गयी कि ‘हवा में उड़ गए है श्रीराम’ का मतलब किसी की भावना को आहत करना नहीं बल्कि बीजेपी के स्लोगन की सियासी काट निकालना था. बीजेपी समेत विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रमों में उस समय जय श्रीराम का नारा सुनाई पड़ता था. मुलायम के करीबी पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह कहते हैं ‘ ये नारा दरअसल मंडल और कमंडल( आरक्षण समर्थन और आरक्षण का विरोध) में विरोध की वजह से जन्मा. कांशीराम -मुलायम मंडल के पक्ष में थे. ऐसा लोगों का मानना था कि आरक्षण से ध्यान हटाने के लिए ही बाबरी मस्जिद का प्रकरण लाया गया है. ये उन्हीं लोगों को हवा में उड़ाने की बात थी. ये नारा राम के बारे में नहीं था.’
मन से है मुलायम, इरादे लोहा हैं…
ये वो नारा है जो बाद के समय में बना. 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उनको कोई धुन पसंद आयी. वो उस पर गीत बनाना चाहते थे. ये स्लोगन दरअसल एक गीत की लाइन है जिसे मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी उदय प्रताप सिंह ने लिखा है. उदय प्रताप सिंह कहते हैं ‘अखिलेश जी ने उस धुन पर समाजवादी पार्टी के लिए कोई गीत बनाने की इच्छा ज़ाहिर की. मैंने उनको कहा कि नीरज जी चूंकि गीतकार हैं और फ़िल्मों में धुन पहले बनती है फिर गीत लिखे भी जाते हैं. तो वो नीरज जी से सम्पर्क करें. पर धुन अंग्रेज़ी गाने की थी. नीरज जी ने कहा कि उनको तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. फिर अखिलेश ने मुझसे कहा हो मैंने वो गीत लिखा था. गीत में समाजवादी और समाजवादी लोगों के काम थे. लेकिन गीत की ये लाइन ‘मन से है मुलायम और इरादे लोहा है’ नारे के तौर पर मशहूर हो गया.
उदय प्रताप सिंह शुरू से मुलायम की राजनीति और संघर्षों के गवाह रहे हैं. इसलिए वो मुलायम की शुरुआती दौर की राजनीति का एक नारा भी याद करते हैं. खुद उदय प्रताप सिंह ने इसको लिखा था. कार्यकर्ता उसी कविता की लाइन ‘वीर मुलायम सिंह नेता मज़दूरों और किसानों के’ जनसभा में लगाते थे. मुलायम की मौजूदगी में लगने वाले एक और नारे की बात उदय प्रताप सिंह करते हैं. उन्होंने एक कविता 1984 में लिखी थी बाद के समय में मुलायम के कार्यक्रमों में कार्यकर्ता एक नारे के रूप में इसका प्रयोग करते रहे.
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