अक्सर हम उत्तर प्रदेश में जब भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अद्भुत चुनावी विजय की चर्चा करते हैं, तो सबके जेहन में गुजराती जोड़ी आती है. यानी पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी. लेकिन 2014 के आम चुनावों के बाद से यूपी में बीजेपी को मिली अबतक कुल 4 सबसे बड़ी जीत के तमाम नायकों में से एक नाम सुनील बंसल का भी है. बुधवार यानी 10 अगस्त को उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में संगठन के स्तर पर व्यापक फेरबदल की खबरें सामने आईं. एक लंबे समय से यूपी में बीजेपी के संगठन मंत्री के रूप में सफलतापूर्वक काम कर रहे सुनील बंसल की जिम्मेदारियां अचानक बदल गईं.
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सुनील बंसल को यूपी की जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए बीजेपी का राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त किया गया है. इसके अलावा उन्हें पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है. यूपी बीजेपी को धर्मपाल के रूप में नया प्रदेश संगठन मंत्री मिला है.
आपको बता दें कि बीजेपी में संगठन मंत्री या जनरल सेक्रेटरी (आर्गनाइजेशन) की भूमिका काफी अहम होती है. इस पद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से आने वाले वरिष्ठ प्रचारकों को जगह मिलती है. एक तरह से यह सांगठनिक कार्यों के अलावा बीजेपी और संघ के बीच की कड़ी के रूप में भी काम करते हैं. हालांकि सुनील बंसल को बीजेपी में प्रमोशन मिला है, लेकिन उनके सांगठनिक कौशल से यूपी में बीजेपी जिस ऊंचाई पर पहुंची, अब उनके जाने के बाद इस एक्स फैक्टर के मिस होने के चर्चे शुरू हो गए हैं.
गुजराती और राजस्थानी जोड़ी ने यूपी में किया कमाल, पहले यूपी में आए शाह फिर हुई सुनील बंसल की एंट्री
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब, ‘बीजेपी: कल, आज और कल’ में लिखते हैं कि जब 2013 में अमित शाह को यूपी की जिम्मेदारी मिली तो यहां बीजेपी के नेताओं को लगा कि गुजरात का यह शख्स न तो यूपी की राजनीति समझ पाएगा और न ही यहां के नेताओं को. लेकिन अमित शाह ने यहां पहुंचते ही स्थानीय नेताओं के इस भ्रम को तोड़ दिया. इस काम में उनकी मदद की मूल रूप से राजस्थान से आने वाले और संघ की पाठशाला में पके सुनील बंसल ने.
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले अमित शाह की मदद के लिए सुनील बंसल को यूपी लाया गया. इससे पहले सुनील बंसल संघ के प्रचारक और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में जयपुर इकाई के महासचिव थे. यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी बताते हैं कि इस गुजराती और राजस्थानी जोड़ी के आने से पहले यूपी में बीजेपी कम से कम 7 गुटों में बंटी हुई थी. पार्टी की गुटबाजी हर चुनावों से पहले चरम पर रहती थी और इसका खामियाजा चुनावी हार के रूप में देखने को मिलता था.
हेमंत तिवारी बताते हैं कि सुनील बंसल जब यूपी आए तो उनकी भिड़ंत इन तमाम गुटों से हुई. तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी से उनकी तल्खी की भी खूब चर्चा रही, क्योंकि वाजपेयी भी अपने तेवरों के लिए जाने जाते रहे हैं. इसके बावजूद सुनील बंसल ने अद्भुत सांगठनिक कौशल का परिचय दिया. वह केंद्रीय नेतृत्व की आंख और कान बन गए. सारे राजनीतिक गतिरोधों को तोड़ने में अहम भूमिका अदा की.
यूपी में अमित शाह और सुनील बंसल की जोड़ी ने 2014 में कमाल कर दिखाया. यहां की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 71 सीटों पर जीत मिली. सुनील बंसल ने बीजेपी पर से शहरी पार्टी का टैग हटाने में काफी मेहनत की. उन्होंने मोदी और शाह के बूथ मैनेजमेंट के आइडिया को यूपी में प्रभावी किया और गांव स्तर तक जाकर करीब डेढ़ लाख बूथों पर भाजपा को मजबूत बनाया.
शहरी टैग हटाने के लिए सुनील बंसल ने ही बीजेपी को पंचायत चुनाव भी लड़ने का आइडिया दिया. यह आइडिया हिट रहा और ग्रामीण मतदाताओं तक पार्टी की सीधी पहुंच सुनिश्चति हुई.
योगी के साथ संबंध सहज नहीं होने की चर्चाओं में कितना दम?
यूपी में जब 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जीत मिली, तो एक चौंकाऊ फैसले में सीएम पद की जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ को मिली. नई सरकार बनते ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि सीएम योगी और सुनील बंसल के बीच चीजें सहज नहीं हैं. आज जब यूपी से सुनील बंसल की विदाई हो रही है, तो सीएम योगी ने ट्वीट किया कि, ‘कुशल एवं ऊर्जावान संगठनकर्ता श्री सुनील बंसल जी को बीजेपी का का राष्ट्रीय महामंत्री नियुक्त होने पर हृदय से बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं. आपके नेतृत्व में संगठन नित नए आयाम स्थापित करे, यही कामना है.’
ऐसे में यह समझना अहम हो जाता है कि यूपी में सुनील बंसल और योगी आदित्यनाथ के रिश्ते कैसे रहे और क्या उनके जाने से योगी आदित्यनाथ को राहत मिलेगी. हमारे यूपी ब्यूरो चीफ कुमार अभिषेक कहते हैं, ‘निश्चित तौर पर यह रिश्ता सहज नहीं रहा. सुनील बंसल संगठन के आदमी रहे और सीएम योगी सरकार चलाते रहे.
हालांकि सार्वजनिक तौर पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि दोनों ने एक दूसरे की आलोचना की हो, लेकिन पावर कॉरिडोर के लोग इस बात को समझते हैं. संगठन में जबतक सुनील बंसल रहे तबतक मुख्यमंत्री का कभी सांगठनिक मामलों में हस्तक्षेप देखने को नहीं मिला. हालांकि सरकार का मुखिया होने के नाते एक सीएम जरूर चाहेंगे कि संगठन में भी उनकी चले. चर्चाएं तो तमाम रहीं, लेकिन इतना जरूर है कि दोनों नेताओं के बीच कथित मतभेद कभी पब्लिक फोरम पर नहीं आए.’
सुनील बंसल के जाने का यूपी में कैसा होगा असर?
अब सुनील बंसल को बीजेपी ने ऐसे राज्यों की जिम्मेदारी दी है, जहां पार्टी कमजोर है. पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना, तीनों ही जगहों पर बीजेपी को चमत्कार की जरूरत है. शायद बीजेपी को उम्मीद है कि बंसल यूपी वाला चमत्कार वहां दोहराएंगे. पर कहीं इस चक्कर में यूपी तो दांव पर नहीं लग जाएगा? वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि बीजेपी आज के समय में चुनाव जीतने की मशीन बन चुकी है. संगठन ने एक पैटर्न सेट कर दिया और खुद सुनील बंसल का मानना है कि 2024 तो छोड़िए, बीजेपी को 2027 और 2029 में भी कोई नहीं हरा पाएगा. हेमंत तिवारी कहते हैं कि सुनील बंसल को उनके कठिन परिश्रम का इनाम देते हुए चुनौतीपूर्ण राज्यों में भेजा गया है क्योंकि बीजेपी यूपी में अपनी जीत को लेकर आज से ही आश्वस्त है.
सुनील बंसल को मिली नई जिम्मेदारी, धर्मपाल बनाए गए यूपी बीजेपी के नए महामंत्री संगठन
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