यूपी निकाय चुनाव से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण रद्द होने के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल गरम हो गया है और सभी राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर हमलावर होती हुई दिखाई पड़ रही हैं. इसी को लेकर यूपी तक ने वरिष्ठ पत्रकारों के साथ बीएसपी चीफ मायावती द्वारा ट्वीट किए गए मुद्दों पर, जिसमें उन्होंने सभी पार्टियों को पिछड़े -अति पिछड़े और एससी-एसटी का विरोधी बताया.
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मायावती ने कहा कि जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो उन्होंने मंडल कमीशन को लागू नहीं होने दिया था. वहीं सपा ने संसद में बिल फाड़ दिया था. इन्हीं तमाम मुद्दों पर हमने सीनियर जॉर्नलिस्टों से बात की.
वरिष्ठ पत्रकार शिवशरण सिंह ने कहा कि अब आरक्षण मुद्दे पर सभी पार्टियां उतर गई हैं जिसमें बसपा भी मैदान में आ गई है. इसके चलते भाजपा ने कांग्रेस भाजपा और अन्य पार्टियों आरक्षण मसले पर लपेटा है. चाहे वह समाजवादी पार्टी ही क्यों ना हो. सभी को बसपा ने आड़े हाथों लिया है, क्योंकि बसपा पिछड़ों की राजनीति करके उनके बैंक वोट को अपनी तरफ खींचना चाहती है, क्योंकि जो बैकवर्ड था, वह सपा और भाजपा में चला गया है. ऐसे में बसपा अपना अस्तित्व बचाने के लिए इस तरीके की राजनीति कर रही है, क्योंकि आने वाले लोकसभा चुनाव में अपना अस्तित्व बचाने के लिए बसपा को एक नया मुद्दा मिल गया है, इसीलिए वह इस पर काम कर रही है.
उन्होंने कहा कि सरकार में मंडल कमीशन लागू हुआ वह जनता जानती हैं, लेकिन बसपा जो यह कर रही है सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए उसको यह मुद्दा मिल गया है.
शिव शरण सिंह ने आगे कहा कि ट्विटर पर आज सभी दल आ गए हैं. मायावती भी उसी से राजनीति कर रही हैं, लेकिन मायावती की राजनीति करने का अलग अंदाज है. संगठन के साथियों के साथ बैठकर उन्हें दिशा निर्देश देती हैं और उनका काम यह चालू भी है. वह लगातार बैठक कर रही हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश कर रही हैं कि इस आरक्षण मुद्दे को कैसे भुनाया जाए.
शिव शरण सिंह ने कहा कि मायावती जो कह रही है कि उनकी सरकार में पिछड़े अति पिछड़े और दलितों को आरक्षण दिया गया तो ऐसा नहीं है. सपा और भाजपा ने भी दिया है. हो सकता है सपा सरकार ने एक विशेष जाति के लिए ज्यादा आरक्षण दिया हो, लेकिन उन्होंने भी अपने कार्यकाल में अन्य वर्गों को भी दिया है, लेकिन जो मायावती ने जो बयान दिया है वह अपना अस्तित्व बताने के लिए दिया है.
सीनियर जर्नलिस्ट सुशील दुबे ने यूपी तक से बातचीत में कहा कि आरक्षण का जो मुद्दा है, उसमें सत्ता पक्ष के लिए “जय श्री राम हो गया काम” और विपक्ष के लिए कहूंगा कि “जय लंकेश बन गया केस”. ऐसी पार्टियों के लिए अब यह एक केस की तरह हो चुका है और रायता ठीक-ठाक बिखर गया है. अब कौन कितना रायता बटोर सकता है इसकी तैयारी हो रही है.
सुशील दुबे ने कहा कि मायावती जो यह चिंता दिखा रही हैं वह बहुत जायज है, जो 15 फुट की बाउंड्री और 25 फुट के गेट में रहती हैं, उनका चिंता करना बहुत सुखद है. कम से कम कोर्ट में जो पैरवी हुई और जो अधिकारियों के नासमझी से “लंका कांड” हुआ है, इससे विपक्षी पार्टियों और नेताओं की लाटरी खुल गई है. ठंड में घर बैठे हीटर और रजाई मिल गई है. कुल मिलाकर मायावती अगर इसमें नहीं हाथ सकेंगी तो कौन सेंकेगा? अब इससे अच्छा मुद्दा और क्या मिल सकता है मायावती को.
उन्होंने आगे कहा कि मायावती एक बार सपा के दम पर एक बार भाजपा के दम पर और एक बार ब्राह्मणों के दम पर सरकार बनाई. मायावती को यह सोचना चाहिए कि एससी-एसटी को कितना हक मिला, क्योंकि मायावती की घर की दीवारें और नोएडा के पत्थर बताते हैं कि किसको कितना मिला है. आज भी एससी-एसटी गरीब ठंडी में कथरी ओढ़ कर 7 डिग्री में सो रहा है. एससी-एसटी आज लाइन लगाकर राशन के लिए कटोरा लेकर खड़ा है. एससी-एसटी कितना मजबूत हुआ है. वह मायावती और उनके नेता अच्छे से जानते हैं. लाखों की गाड़ियों फॉर्च्यूनर से चलते हैं. एक लाख की घड़ी पहनते हैं.
उन्होंने कहा,
“एससी-एसटी अपने अधिकारों के लिए जागरूक हुआ है, लेकिन मजबूत नहीं हुआ है. मायावती आखिर कब तक अंबेडकर और कांशीराम की आड़ में अपनी राजनीति करेंगी. अब ट्वीट करके राजनीति नहीं होती है. बाकी लोग संघर्ष कर रहे हैं. सड़क पर भी उतर रहे हैं. ऐसे में ट्वीट करके राजनीति जो कर रही है तो लोकसभा चुनाव आने वाला है. पिछली बार तो सपा साथ थी और एक सीट मिली थी, अब जो 1 सीट है उस पर भी तो कम से कम चिंतन करना चाहिए मायावती को.”
सुशील दुबे
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह ने बातचीत के दौरान कहा कि अगर आज कांग्रेस ना होती तो मायावती ऐसा बयान ना बोल रही होती. अगर कांग्रेस ने नहीं किया है एससी-एसटी और पिछड़ों के लिए तो किसने किया है? सच्चाई यह है कि सभी राजनीतिक दलों की निगाह ओबीसी, बैकवर्ड और एससी-एसटी के वोट बैंक पर है.
उन्होंने कहा कि मायावती की पार्टी का जन्म कांग्रेस के वोट बैंक से हुआ था. मायावती को पहले अपने दलित वर्ग के बारे में और उसके वोट बैंक के बारे में सोचना चाहिए फिर पिछड़ों के वोट बैंक के बारे में सोचना चाहिए. वहीं कांग्रेस की स्थिति तो ऐसी हो गई है मानो “गरीब की भौजाई” जो चाहता है कांग्रेस पर हमला बोल देता है, लेकिन सोचना चाहिए कि कांग्रेस ने ओबीसी, एससी-एसटी के लिए क्या-क्या किया है. अगर कांग्रेस ना होती तो यह लोग बोल ना पाते और मायावती ट्वीट करने की स्थिति में ना होती.
जर्नलिस्ट शिव विजय सिंह मानें तो इस समय सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चल रही है. पिछले समय में आपने देखा होगा यही बसपा-सपा और कांग्रेस मिलकर एक साथ चुनाव लड़ती रही हैं. यहां बात ओबीसी और बैकवर्ड की नहीं है. यहां बात है कि कौन इन लोगों को पकड़ सकता है. ऐसे में तीनों दल इस मुद्दे को कैच करने में लगे हुए हैं. भविष्य में देखा जाएगा कि कौन किसको कितना कैच करके अपनी तरफ कर पाया.
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