Uttar Pradesh News : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ (Bharat Ratna) से सम्मानित किया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को खुद ‘एक्स’ पर पोस्ट के जरिए यह जानकारी दी. वहीं पीएम मोदी के इस एलान के बाद चौधरी चरण सिंह के पोते और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) चीफ जयंत चौधरी ने बीजेपी के साथ जाने का इशारा भी कर दिया.
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जयंत का बड़ा इशारा
जयंत चौधरी ने शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए साफ कर दिया कि, 'अब वह किसी मुंह से बीजेपी से जाने की बात से इंकार करें.' यानी यह पुष्टि हो गई कि मोदी सरकार के इस मूव के बाद जयंत चौधरी अब विपक्ष के इंडिया नहीं बल्कि बीजेपी के एनडीए गठबंधन का हिस्सा हो जाएंगे. वहीं ठीक 16 साल पहले भी ऐसे ही चौधरी परिवार को कांग्रेस ने अपने तरफ लाने की कोशिश की थी पर वो प्लान फेल हो गया था. आइए जानते हैं ये दिलस्चप किस्सा.
16 साल पुराना है ये किस्सा
चौधरी परिवार और कांग्रेस से जुड़ा ये किस्सा है साल 2008 का. उस वक्त देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार था और डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. उस वक्त यूपीए सरकार भारत-अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील कर रही थी. तब यूपीए सरकार में मौजूद वामपंथी फ्रंट ने इसका विरोध किया और सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया. मनमोहन सरकार को 22 जुलाई 2008 को संसद में बहुमत परीक्षण से गुजरना था. वामपंथी दलों के विरोध के बाद मनमोहन सरकार अल्पमत में थी. तभी सरकार के संकट मोचक बनकर आए दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव. समाजवादी पार्टी के पास उस समय 37 सांसद थे. सपा के यूपीए सरकार के सपोर्ट में आने के बावजूद बहुमत का आंकड़ा पूरा नहीं हो रहा था.
अजित सिंह को मनाने की कोशिश
बता दें कि साल 2004 में लोकसभा चुनाव अजित सिंह और राष्ट्रीय लोकदल ने मुलायम के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. आरएलडी के तब 3 सांसद थे. आरएलडी को अपने पक्ष में करने के लिए तत्कालीन मनमोहन सरकार ने बहुमत परीक्षण की तारीख यानी 22 जुलाई 2008 से पांच दिन पहले 17 जुलाई को लखनऊ के अमौसी एयरपोर्ट का नाम पूर्व पीएम और अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह के नाम पर रखने का ऐलान कर दिया.
फेल हुआ कांग्रेस का प्लान
कांग्रेस को लगा कि ऐसा कर देने से शायद RLD चीफ अजित सिंह को मनाना आसान हो जाएगा और उनके 3 सांसदों का समर्थन ट्रस्ट वोट में मिल जाएगा. पर ऐसा हुआ नहीं. तब अजित सिंह की तत्कालीन कद्दावर सपा नेता अमर सिंह से अदावत थी. उन्होंने कहा कि अमर सिंह कांग्रेस को चला रहे हैं और उस सरकार को वो सपोर्ट नहीं कर सकते. अजित सिंह के सांसदों ने यूपीए सरकार के खिलाफ वोट किया. इसके बावजूद मनमोहन सिंह सरकार बच गई.
वैसे अजित सिंह का यह स्टैंड ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका. वह 2009 का चुनाव उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था. 7 सीटों में से आरएलडी पांच सीट जीत गई. लेकिन बीजेपी इस चुनाव में मनमोहन सिंह सरकार को हरा नहीं पाई. इसके बाद 2011 में अजित सिंह यूपीए के साथ आ गए. उन्हें मनमोहन कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्रालय भी मिला.
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