राजा सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान के लेख और लखनऊ यूनिवर्सिटी के इतिहास का ये कैसा कनेक्शन?

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उत्तर प्रदेश में पढ़ाई के लिए कुछ मशहूर जगहों का जिक्र किया जाए, तो तीन शहरों में मौजूद यूनिवर्सिटी का नाम सभी लेते हैं. वाराणसी में स्थित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU), प्रयागराज में स्थित इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (Allahabad University) और लखनऊ में स्थित लखनऊ यूनिवर्सिटी (University of Lucknow). लखनऊ यूनिवर्सिटी का इतिहास काफी शानदार रह है और वर्तमान में ये विश्वविद्यालय अकादमिक क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रहा है. पर क्या आप इस शानदार यूनिवर्सिटी के बनाए जाने की कहानी जानते हैं? क्या आप जानते हैं कि एक राजा सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान हुआ, जिनके लिखे हुए लेख को श्रेय जाता है कि यह यूनिवर्सिटी बनी? आइए आपको लखनऊ यूनिवर्सिटी के इतिहास से जुड़ा यह खास किस्सा विस्तार से बताते हैं.

कौन थे राजा सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान और लखनऊ यूनिवर्सिटी से उनका कैसा रिश्ता?

आप लखनऊ यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट www.lkouniv.ac.in पर जाएंगे, तो आपको वहां About the University का एक पेज मिलेगा. इस पेज पर लखनऊ यूनिवर्सिटी के इतिहास से जुड़ी इस खास कहानी का जिक्र है. इसके मुताबिक लखनऊ में एक यूनिवर्सिटी शुरू करने का विचार सबसे पहले राजा सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान, खान बहादुर, K.C.I.I की ओर से रखा गया था.

असल में सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविंस के सबसे बड़े सूबों में से एक महमूदाबाद के राजा थे. वह 4 जून 1878 को पैदा हुए थे. 28 जून 1903 को अपने पिता के निधन के बाद उन्हें महमूदाबाद का राजा बनाया गया. उन्होंने लखनऊ को यूनाइटेड प्रोविंस की राजधानी बनाने और लखनऊ यूनिवर्सिटी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. 1920 में जब लखनऊ यूनिवर्सिटी बनी, तो सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान उसके फाउंडिंग मेंबर्स में से एक थे.

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लखनऊ यूनिवर्सिटी को बनाने में क्या था सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान का योगदान?

सबसे पहले सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान ने ‘द पायनियर’ अखबार में एक कॉलम लिखा. इस कॉलम में उन्होंने लखनऊ में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का आग्रह किया. इसके कुछ दिनों बाद ही सर हरकोर्ट बटलर को यूनाइटेड प्रोविंस यानी संयुक्त प्रांत का लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किया गया. वह सर मोहम्मद अली मोहम्मद खान के निजी सलाहकार भी थे और शिक्षा को लेकर उनका भी एक खास आग्रह हुआ करता था. इन दोनों लोगों की जोड़ी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के स्थापना के आइडिया को मूर्त रूप देने का अभियान तेज किया. सर हरकोर्ट बटलर ने इसके लिए शिक्षाविदों और विश्वविद्यालय शिक्षा में रुचि रखने वाले व्यक्तियों की एक सामान्य समिति को नियुक्त किया. इस समिति का एक सम्मेलन 10 नवंबर, 1919 को गवर्नमेंट हाउस, लखनऊ में हुआ. इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे सर हरकोर्ट बटलर ने नए विश्वविद्यालय के लिए प्रस्तावित योजना की रूपरेखा तैयार की.

इस चर्चा में तय किया गया कि लखनऊ में प्रस्तावित यूनिवर्सिटी को कलक्ता यूनिवर्सिटी मिशन, 1919 की अनुशंसाओं के मुताबिक ही किया जाएगा. उस वक्त तय हुआ कि इस यूनिवर्सिटी में आर्ट फैकल्ट, ओरिएंटल स्टडी, साइंस, मेडिसिन और लॉ जैसे विषयों की पढ़ाई होनी चाहिए. इसे लेकर छह उप-समितियां बनाई गईं, उनमें से पांच विश्वविद्यालय से जुड़े प्रश्नों पर विचार करने के लिए थीं और एक इंटरमीडिएट शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था पर विचार करने के लिए बनी.

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इन उप-समितियों की बैठक नवंबर और दिसंबर, 1919 और जनवरी, 1920 में हुई. उनकी बैठकों की रिपोर्ट 26 जनवरी, 1920 को लखनऊ में सामान्य समिति के दूसरे सम्मेलन के समक्ष रखी गई. उप-समिति की रिपोर्ट पर 7 अगस्त, 1920 को सीनेट की एक बैठक में विचार किया गया, जिसकी अध्यक्षता चांसलर ने की और योजना को आम तौर पर मंजूरी दे दी गई.

फिर पेश हुआ लखनऊ यूनिवर्सिटी बनाने का विधेयक

अप्रैल 1920 में संयुक्त प्रांत के तत्कालीन सार्वजनिक निर्देश निदेशक C.F. de la Fosse ने लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए एक मसौदा विधेयक तैयार किया. इसे 12 अगस्त, 1920 को विधान परिषद में पेश किया गया था. फिर इसे एक चयन समिति को भेजा गया. यह विधेयक संशोधित रूप में 8 अक्टूबर, 1920 को परिषद द्वारा पारित किया गया था. लखनऊ यूनिवर्सिटी 1920 का एक्ट नंबर V को 1 नवंबर को लेफ्टिनेंट-गवर्नर की सहमति मिली और 25 नवंबर को गवर्नर-जनरल की. इस तरह आज का लखनऊ विश्वविद्यालय अपने अस्तित्व में आया.

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