यूपी विधानसभा चुनाव में नेता अपनी-अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. कोई प्रतिष्ठा के लिए तो कोई पावर के लिए चुनाव लड़ रहा है, लेकिन वाराणसी के संतोष मूरत की कहानी इन सबसे जुदा और मार्मिक है. संतोष लंबे वक्त से सिर्फ इसलिए चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं क्योंकि राजस्व विभाग अपनी फाइल में जिंदा कर दे ताकि वे अपने हिस्से की जमीन पट्टीदारों के कब्जे से वापस ले सके। आरोप है कि रिश्तेदारों ने सालों पहले संतोष को मृत साबित करके उनके हिस्से की जमीन भी हड़प ली थी. संतोष मूरत इस बार वाराणसी के शिवपुर विधानसभा से जनसंघ पार्टी से पर्चा भरकर फिर से चर्चा में आ गए हैं.
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वाराणसी के चौबेपुर के छितौनी के रहने वाले संतोष मूरत की कहानी वाकई में अलहदा है. इस कहानी का सिरा पकड़ने के लिए आपको 20 साल पहले जाना होगा. शिवपुर विधानसभा से पर्चा भरने आए संतोष मूरत सिंह बताते हैं कि 21 साल पहले उनके गांव में नाना पाटेकर एक फिल्म की शूटिंग करने पहुंचे थे. संतोष अपना गांव छोड़कर नाना पाटेकर के साथ 3 सालों तक रहे. संतोष ने मुंबई में ही शादी कर ली. बाद में अपनी संपत्ति का ब्यौरा जुटाने के दौरान उन्हे पता चला कि उनके पाटीदारों ने वाराणसी सदर तहसील के राजस्व विभाग में उन्हे सरकारी दस्तावेजों में मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में मृत दिखाकर संपत्ति हड़प ली है. उनकी साढ़े 12 एकड़ जमीन अपने नाम करा ली है.
यहां तक कि गांव में उनकी तेरहवीं भी कर दी गई. उसी दिन के बाद से संतोष के जीवन में संघर्ष शुरू हो गया और अब तक संतोष खुद को जिंदा साबित करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. संतोष ने नामांकन के दौरान बताया कि वे पिछले 20 वर्षों से निर्दलीय ही चुनाव लड़ते आए है, लेकिन जनसंघ पार्टी ने इस बार उन्हे टिकट भी दिया है. उनके पास वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड भी है, लेकिन राजस्व विभाग की फाइल में उन्हें मृत घोषित कर दिया है.
संतोष का आरोप है कि उनके पटीदारों ने उनकी जमीन पर कब्जा करके उनका हक मार दिया, तो वहीं सलमान खान ने उनके जीवन पर ‘कागज’ फिल्म बनाकर उनके जीवन पर कब्जा कर लिया. वह बताते है 2012 में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए तिहाड़ जेल से नामांकन भरा था. उनकी मुलाकात यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव और वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ से भी हो चुकी है, लेकिन किसी से मदद नहीं मिल सकी.
वह राष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा और बीडीसी, सारे चुनावों में पर्चा भर चुके हैं. इस बार भी कानपुर से उनका पर्चा भी खारिज हो चुका है 2017 के विधानसभा चुनाव में वे चुनाव में वाराणसी से खड़े हुए थें और उनका दावा है कि उन्हें काफी वोट भी मिले. उन्होंने दावा किया कि अगर वे जीतते हैं तो मजलूमों की आवाज बनेंगे और अपने को जिंदा घोषित करवाने के बाद सरकारी अभिलेखों में ऐसे मृतकों की भी लड़ाई लड़ेंगे.
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