आज जब धर्म में राजनीति और राजनीति में धर्म के मायने तलाशे जा रहे हैं और धार्मिक ग्रंथों से लेकर महापुरुषों तक को निशाना बनाया जा रहा है. और तो और बंटवारा, भेदभाव और अलगाव की बातें हो रही हैं.
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ऐसे में धर्म और गंगा-जमुनी की नगरी से दिल को सुकून देने वाली तस्वीरें आई हैं, जहां एक मुस्लिम हुनरमंद ने अपने हांथों से सूती कपड़े पर ना केवल श्रीमदभगवत गीता, विष्णु सहस्त्रनाम और हनुमान चालीसा लिख डाला है. खास बात यह है कि इस खास लेखनी में स्याही में इस्तेमाल गंगा की मिट्टी का हुआ है.
वस्त्र कलाकार हाजी इरशाद अली बनारसी वाराणसी के मिश्रित आबादी वाले भेलूपुर क्षेत्र में रहते हैं. वे बताते हैं कि उनके पिता जी कफन पर लिखा करते थे जो अभी भी कफन पर ही लिखते हैं. जब कोई गुजर जाता है तो उस लिखे हुए कफन को मृत व्यक्ति पर चढ़ाया जाता है. उस मय्यत के कपड़े पर अरबी की लिपि होती है, लेकिन इरशाद के बच्चों ने उन्हे कुछ अलग लिखने के लिए प्रेरित किया. जिसके बाद 2012 में उन्होंने कपड़े पर ही कुरान लिखना शुरू किया, जो 2018 में पूरा हो गया. इसी कड़ी में हिंदू आबादी में होने की वजह से बगल के पंडित से संपर्क हुआ, जिन्होंने अपनी गीता दी. गीता का अध्ययन किया और कोशिश थी कि जिस तरह से कुरान लिखा उसी तरह गीता भी लिखा जाए और वे भी पूरी हो गई जिसकी कुछ दिनों में ही बांडिंग भी हो जाएगी.
इरशाद आगे बताते हैं कि फिर नए संसद भवन के लिए 30 मीटर के कपड़े पर भगवत गीता, विष्णु सहस्त्रनाम और हनुमान चालीसा को भी लिखा, जिसमें आरती भी है. वे बताते हैं कि लिखने का जब से शौक हुआ तभी से ढाई साल में सारा सेटअप पूरा किया. साढ़े चार साल में कुरान, सवा साल में बुक वाली गीता और सवा साल में कपड़े वाली गीता पूरी हो गई.
उन्होंने आगे बताया कि हनुमान चालीसा लिखने में ज्यादा वक्त नहीं लगा, क्योंकि दोहा-चौपाई मिलाकर कुल लगभग 100 लाइन्स हैं. सभी मिलाकर लगभग 52 श्लोक हैं. तीन दिनों में हनुमान चालीसा पूरी कर ली और एक माह में विष्णु सहस्त्रनाम पूरा कर लिया, जो लगभग साढ़े 5 मीटर कपड़े पर है और 22 मीटर में कपड़े में पूरी गीता को लिखा गया है. कुल मिलाकर सवा साल में पूरा हो गया.
उन्होंने बताया कि लिखावट में इस्तेमाल की जाने वाली स्याही में पानी, काशी की गंगा जी की मिट्टी और घर में इस्तेमाल होने वाला गोंद है, जिसे मिलाकर स्याही बनाई जाती है, जिसे शुद्ध 100 प्रतिशत काॅटन पर लिखा गया है. बाढ़ में गंगा के किनारे लगी मिट्टी को बकायदे कंकड़-पत्थरों से चुनकर लाया जाता है और उसे छान भी लिया जाता है. फिर उसे पानी और घर पर इस्तेमाल होने वाले गोंद में मिलाया जाता है. सभी चीजें आध्यात्मिक ही इस्तेमाल होती हैं.
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