Prayagraj news: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेप और कथित तौर पर जातिसूचक अपमान के लिए लगाए गए एससी-एसटी एक्ट से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने इस फैसले को सुनाते हुए एक जरूरी टिप्पणी में कहा है कि यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में कानून महिलाओं का पक्षधर है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमेशा पुरुष ही गलत हो, महिला की भी गलती हो सकती है. हाईकोर्ट ने पुरुष को बरी करते हुए कहा कि केस पर निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए परिस्थितियों का आकलन करना हमेशा बेहद महत्वपूर्ण होता है. न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि सबूत पेश करने की जिम्मेदारी सिर्फ आरोपी की ही नहीं है, बल्कि शिकायतकर्ता की भी है. हाई कोर्ट ने रेप के आरोपी को बरी करने के सत्र अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है.
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आइए आपको विस्तार से इस मामले की पूरी कहानी बताते हैं.
खुद को यादव बता शादीशुदा महिला ने पुरुष से बनाए थे संबंध!
महिला ने साल 2019 में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने उससे शादी का वादा करके शारीरिक सम्बंध बनाए, लेकिन बाद में वो अपने वादे से मुकर गया. महिला का ये भी आरोप था कि आरोपी ने उसकी जाति को लेकर भी अपमानजनक बातें कहीं हैं. इस मामले में आरोपी के खिलाफ 2020 में चार्जशीट दाखिल की गई थी. हालांकि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दुष्कर्म के आरोपों से बरी कर दिया था और सिर्फ आईपीसी की धारा 323 के तहत दोषी ठहराया था. इसके बाद महिला हाईकोर्ट पहुंची थी.
आरोपी का कहना था कि महिला के साथ उसके संबंध सहमति से थे. आरोपी के मुताबिक महिला ने खुद को ‘यादव’ जाति का बताया था, लेकिन उसकी जाति कुछ और निकली. इसके बाद उसने शादी से इनकार कर किया. कोर्ट ने रिकॉर्ड के आधार पर पाया कि महिला ने साल 2010 में शादी की थी, लेकिन 2 साल बाद ही वो अपने पति से अलग हो गई थी. हालांकि दोनों का तलाक नहीं हुआ था.
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं है कि यौन अपराधों में एक महिला/लड़की की गरिमा और सम्मान की रक्षा को प्रमुखता देते हुए कानून महिला केंद्रित हैं. ये जरूरी भी है, लेकिन परिस्थितियों का आकलन भी जरूरी है. हर बार ये जरूरी नहीं कि पुरुष ही गलत हो.” इस मामले में महिला ने आरोपी के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में भी मामला दर्ज कराया था. ऐसे में कोर्ट ने अहम टिप्पणी की और कहा, “परिस्थितियों के मुताबिक, इस बात की संभावना कम है कि आरोपी ने महिला को शादी के झूठे वादे में फंसाया हो. दूसरी बात ये है कि महिला पहले से ही विवाहित थी और उसका विवाह अब भी कानून की नजर में मौजूद है. ऐसे में शादी का वादा करने का आरोप अपने आप खत्म हो जाता है.'
कोर्ट ने कहा था कि समाज में किसी भी रिश्ते को स्थायित्व देने में दोनों पक्षों के जाति की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जबकि ये साफ है कि महिला ने अपनी जाति छिपाई थी. कोर्ट ने कहा कि महिला पहले से शादीशुदा थी और पिछली शादी को खत्म किए बिना और बिना किसी आपत्ति के वो 5 साल तक आरोपी से संबंध बनाए रखती है. दोनों ने एक-दूसरे के साथ का आनंद लिया. ऐसे में ये तय करना मुश्किल है कि कौन किसे बेवकूफ बना रहा था. ऐसे में यौन उत्पीड़न या रेप का मामला सही नहीं लगता.
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