Uttar Pradesh Ramcharitmanas Controversy: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत द्वारा पंडितों और जाति-संप्रदाय को लेकर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) सुप्रीमो अखिलेश यादव ने सोमवार को कहा कि उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि जाति-वर्ण को लेकर क्या वस्तुस्थिति है?
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सपा प्रमुख ने सोमवार को एक अखबार में प्रकाशित खबर की तस्वीर साझा करते हुए ट्वीट किया,
“भगवान के सामने तो स्पष्ट कर रहे हैं, कृपया इसमें ये भी स्पष्ट कर दिया जाए कि इंसान के सामने जाति-वर्ण को लेकर क्या वस्तुस्थिति है.”
अखिलेश यादव
क्या कहा था मोहन भागवत ने?
आरएसएस चीफ मोहन भागवत का एक बयान रविवार से वायरल हो रहा है. न्यूज एजेंसी एएनआई ने इस बयान का करेक्शन पेश किया है. असल में मोहन भागवत ने मुंबई के एक कार्यक्रम में जाति व्यवस्था को लेकर एक टिप्पणी की. एएनआई के करेक्शन ट्वीट के मुताबिक भागवत ने कहा, ‘सत्य ही ईश्वर है, सत्य कहता है मैं सर्वभूति हूं, रूप कुछ भी रहे योग्यता एक है, ऊंच-नीच नही है, शास्त्रों के आधार पर कुछ पंडित जो बताते है, वो झूठ है. जाति की श्रेष्ठता की कल्पना में ऊंच नीच में अटक कर हम गुमराह हो गए, भ्रम दूर करना है.’
सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसी बयान पर एक अलग ट्वीट में कहा, ‘‘जाति-व्यवस्था पंडितों (ब्राह्मणों) ने बनाई है, यह कहकर संघ प्रमुख श्री भागवत ने धर्म की आड़ में महिलाओं, आदिवासियों, दलितों एवं पिछड़ों को गाली देने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों और ढोंगियों की कलई खोल दी, कम से कम अब तो ‘रामचरितमानस’ से आपत्तिजनक टिप्पणी हटाने के लिये आगे आयें।’’
मौर्य ने कहा, ‘‘यदि यह बयान मजबूरी का नहीं है तो साहस दिखाते हुए केंद्र सरकार को कहकर, ‘रामचरितमानस’ से जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर नीच, अधम कहने तथा महिलाओं, आदिवासियों, दलितों एवं पिछड़ों को प्रताड़ित, अपमानित करने वाली टिप्पणियों को हटवाएं मात्र बयान देकर लीपापोती करने से बात बनने वाली नहीं है.”
सपा नेता मौर्य ने 22 जनवरी को कहा था, ‘‘धर्म का वास्तविक अर्थ मानवता के कल्याण और उसकी मजबूती से है. अगर ‘रामचरितमानस’ की किन्हीं पंक्तियों के कारण समाज के एक वर्ग का जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर अपमान होता हो तो यह निश्चित रूप से धर्म नहीं बल्कि अधर्म है. ‘रामचरितमानस’ की कुछ पंक्तियों (दोहों) में कुछ जातियों जैसे कि तेली और कुम्हार का नाम लिया गया है.
उन्होंने कहा था, ‘‘‘रामचरितमानस’ के आपत्तिजनक हिस्सों जिनसे जाति वर्ग और वर्ण के आधार पर समाज के एक वर्ग का अपमान होता है उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए.”
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